हैं कहाँ वे लोग?

01-06-2020

हैं कहाँ वे लोग?

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ (अंक: 157, जून प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

हैं कहाँ
वे लोग 
इतने प्यार के
पड़ गए 
हम हाथ में, बटमार के।


मौत बैठी
मार करके
कुण्डली
आस की 
संझा न जाने 
कब ढली 
भेजता, पाती न मौसम
हैं खुले पट
अभी तक, दृग-द्वार के।


बन गईं
सुधियाँ सभी
रातरानी
याद आती-
बात बरसों पुरानी
अब कहाँ दिन
मान के, मनुहार के। 

गगन प्यासा 
धूल धरती 
हो गई
हाय वह 
पुरवा कहाँ पर 
सो गई
यशोधरा-सी
इस धरा को छोड़कर
सिद्धार्थ -से
बादल गए इस बार के।

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