ज्ञान की डोरी
प्रभात कुमार
पढ़ावत-पढ़ावत मास बीत भइले,
सीखन पाठ पढ़त न कोई
ले प्रभात की डोरी सबहुई
सागर पार करे तब कोई,
सीख-सीखावन की बारी आई
मुँहज़ोर करें सब कोई
लगा न जोर मनवा में
कालिक पोते निज मन होई,
हाँस लगाई लोगन पर
मन सुख कर आपणों
ज्ञानी सबहुँ होई,
निज मन निर्मल करे न कोई
पाठ-पढ़ावे हर कोई,
देख प्रभु करे संताप
मूर्खन का है क्रिया-कलाप,
ज्ञान डोर की पकड़े वाणी
उह लोगन भये सब ज्ञानी॥
3 टिप्पणियाँ
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Good
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बहुत खूब
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प्रेरक कविता के लिए साधुवाद