ज्ञान जो अमृत है

15-09-2021

ज्ञान जो अमृत है

राजनन्दन सिंह (अंक: 189, सितम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

ज्ञान जो अमृत है
जिसे स्वर्ण कलश में नहीं 
तो कम से कम 
गंगाजल की शीशी में 
तो होना ही चाहिए 
ऐसा मुझे लगता है
 
मगर ज्ञान की भीड़ में 
निरर्थक स्पैम बना 
गंदे पॅाली बैग की तैरती 
गुटलियों से भरी
गंदी नाली की तरह 
सोशल मिडिया के गोदाम में 
ठसाठस भरा अटका पड़ा है
जिसे कोई नहीं  पढ़ता
अपने डिवाइस से
हर कोई मिटा देता है
 
वही ज्ञान
जो सार्थक है
कहाँ मिलेगा
कौन बतायेगा
राशनकार्ड 
और डिग्रियों की थैली लेकर
धक्के खाने से भी 
स्रोत का पता नहीं चलता 
जो यह बता दे 
वह कौन सी विद्या है
जो चैनल के सामान्य पत्रकार को
चैनल का मालिक बना देती है
या देखते ही देखते
किसी बनिये की दुकान से
शेयर बाज़ार में
ऊँची से ऊँची 
छलाँग लगवा देती है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में