गोरी होली खेलन चली

23-05-2017

गोरी होली खेलन चली

डॉ. रमा द्विवेदी

आयी है रंगो की बहार
गोरी होली खेलन चली
 
ललिता भी खेले विशाखा भी खेले
संग में खेले नंदलाल...
गोरी होली खेलन चली ।
 
लाल गुलाल वे मल मल लगावें
होवत होवें लाल लाल...
गोरी होली खेलन चली
 
रूठी राधिका को श्याम मनावें
प्रेम  में हुए हैं निहाल...
गोरी होली खेलन चली
 
सब रंगों में प्रेम रंग सांचा
लागत जियरा मारै उछाल...
गोरी होली खेलन चली
 
होली खेलत वे ऐसे मगन भयीं
मनुंआ में रहा न मलाल...
गोरी होली खेलन
 
तन भी भीग गयो मन भी भीग गयो
भीगा है सोलह शृंगार...
गोरी होली खेलन चली
 
झ्सको सतावें उसको मनावें
कान्हा  की देखो यह चाल...
गोरी होली खेलन चली
 
कैसे बताऊँ मैं कैसे छुपाऊँ
रंगों ने किया है जो हाल...
गोरी होली खेलन चली
 
आओ मिल के प्रेम बरसायें
अम्बर तक उड़े गुलाल...
गोरी होली खेलन चली ।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कहानी
गीत-नवगीत
कविता
कविता - क्षणिका
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में