घुँघरू

कविता झा (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

प्रेम का पहला-पहला ही तो एहसास था,
मधुर-मधुर हृदय में पीड़ा का आभास था,
तुम से मिलते ही जैसे मैं जी उठती थी,
और घुँघरू प्रेम का पहला उपहार था।
 
पाँव में पहन कर जब कभी चलती थी,
दूर से ही तुम आवाज़ से पहचान लेते थे,
जिय में तुम्हारे भी एक कसक उठती थी,
और मुझे छल कर जी भर सता लेते थे,
वो सुमधुर ऐसा निश्छल अपना प्यार था,
हृदय मेरा ईश्वर का सदैव मानता आभार था।
 
जिसके लिए छोड़ी दुनिया तुमने भी, मैंने भी,
सब रिश्ते-नाते भूल बनी बस तेरी प्रेयसी,
रात-दिन एक रट तेरा नाम जपते जपते,
सुध बुध खो लो हो गई मैं तेरी ही दासी,
उस प्रेम में मेरा भी क्या कम अधिकार था,
उस घुँघरू में छलक रहा प्रेम का राग था,
ऐसा प्रेम का तेरा पहला उपहार था।
  
नहीं रोका जब छोड़ मुझे तू जा रहा था,
पीछे से नहीं टोका जब ओझल हो रहा था,
देश पहला प्यार है, तुमने ही तो कहा था,
चुपके से बुदबुदा कर याद दिला दिया था,
पर संजों कर रखे तेरे स्पर्श का एहसास था,
हर पल द्वार पे टिकी आँखों में एक सैलाब था।
 
तेरा नाम आया, और कफ़न में क़ैद एक जान आई,
प्रशंसा हुई, और कितनों ने तेरी कितनी शान बढ़ाई,
शहादत में गर्व करो, पराक्रम से देश की शान रखी,
ऐसे वीर को नमन सबका, मेरी पीड़ मेरी ही रह गई,
हृदय से लगकर रह गई तेरी यादें और वो घुँघरू,,
तेरी साँसें बसती हों जैसे उस घुँघरू में आज भी,
उसके आवाज़ में सुमधुर राग ना बचा ना सही,
तेरी यादों का एक हिस्सा है उसमें आज भी,
एक टक निहारती हूँ घंटों बैठे उस घुँघरू को,
लोग कहते हैं दीवानी हो गई है ये तो अब,
उन्हें क्या पता वो घुँघरू, घुँघरू नहीं है बस,
तेरे-मेरे प्रेम का तेरा पहला उपहार था,
सँजो कर रखूँगी तेरे प्रेम का जो एहसास था,
और यादें सभी जो सीने में जीवित ख़ास था।

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