घर बैठे-बैठे

दिलीप कुमार (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

"पुल बोये से शौक़ से 
उग आयी दीवार
कैसी ये जलवायु है 
हे मेरे करतार"

दुनिया को जीत लेने की रफ़्तार में, चीन ने ये क्या कर डाला, जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है। इस स्वास्थ्य के ख़तरे ने भस्मासुर की भाँति सबको लपेटा और दोस्त-दुश्मन सभी का फ़र्क़ भुला दिया। 

इधर पीएम साहब ने जनता कर्फ़्यू का आह्वान किया उधर कुछ लोगों ने उसका विरोध शुरू कर दिया। भारत में विरोध आमतौर पर तार्किक नहीं बल्कि भावनात्मक होता है। अब लोगों ने जनहित के मुद्दों पर सेलेब्रिटी लोगों के विरोध को व्यक्तिगत रूप से ले लिया और तापसी पन्नू की थप्पड़ फ़िल्म को थप्पड़ मारकर नकार दिया। सरकार के लोकप्रिय फ़ैसलों के विरोध का ये नतीजा निकलेगा ये अनुभव सिन्हा के अनुभव से परे था। वे ट्वीटर पर लोगों से गाली-गलौज करके पूछ रहे हैं कि मेरी फ़िल्म को थप्पड़ क्यों मारा। हाल ही में एक अति फ़ेमिनिज़्म की झंडाबरदार सत्याग्रही मैडम मिल गयीं। आजकल फ़ेसबुक पर थप्पड़ पर दलीलें लिख-लिख कर हलाकान हुई जा रहीं हैं। कुछ दिन पहले ही अपनी उम्रदराज़ नौकरानी को पटक-पटक कर मारने के जुर्म में अग्रिम ज़मानत पाने के लिए ख़ासी चर्चा में थीं। बेचारी परेशान हैं कि वो और उनकी सखियाँ-सहेलियाँ भी थप्पड़ को तोप का गोला बनाने पर तुली हुई हैं। लेकिन जनता कर्फ़्यू ने उनकी बात का तवज्जो ख़त्म कर दिया। सत्याग्रही मैडम का मल्टी लेवल मार्केटिंग का एक बहुत बड़ा नेटवर्क है जो अपने-अपने शहर में आउटलेट खोले बैठा है। इस सत्याग्रही वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड की फ्रेंचाइजी शहरों में हैं जहाँ ये अपनी जड़ें उसी तरह मज़बूत कर रही हैं जिस तरह दरी लगाकर प्रदर्शन करने वाले लोग अब  तख़्त ले आये हैं। खुदा जाने आगे गैस सिलिंडर, घर-गृहस्थी और ना जाने क्या-क्या सामान दिखने लगे इन  तख़्तों पर।  तख़्त पर बैठकर  तख़्तोताज को बदलने का इनका ख़्वाब ऐसा ही है जैसे शेख चिल्ली के ख़्वाब। वैसे भी हिंदी के एक शीर्ष साहित्यकार ने इन लोगों को धरने पर कुछ सटीक और महत्वपूर्ण घरेलू टाइप कार्य करने की सलाह दे ही डाली है। वो दिन दूर नहीं जब आगरा का पेठा जिस तरह मशूहर है उसी तरह धरना गजक, धरना जैकेट, धरना नमकीन जैसे उत्पाद दिख सकते हैं। ऐसा  ही परिवर्तन का  ख़्वाब सत्याग्रही मैडम की फ्रेंचाईजी लेने वाले लोग भी देख रहे हैं। इनका सत्याग्रह पूँजी के ख़िलाफ़ है लेकिन इनके आयोजन जिस शहर में होते हैं उस शहर के दो-चार पूँजीपतियों से ही इनके काम निकलते हैं। मसलन किसी बड़े होटल वाले पूँजीपति से उसका हाल मुफ़्त में माँग लेना, किसी रेस्टोरेंट वाले से जलपान स्पॉन्सर कराना, ये सब इस बिग्रेड के बाएँ हाथ का खेल है। लेकिन हाय रे कोरोना, इन सबको भी कहीं का ना छोड़ा, ये स्वयं घरों में क़ैद हैं, महत्व की जगहों पर जा नहीं पा रही हैं, इनकी टीम इन्फ़ेक्शन के डर से निकल नहीं रही है। कुछेक ने तो फ़ेसबुक पर वीडियो डाला कि ऐसे बचें, वैसे बचें, लेकिन फिर इन्हें याद आया कि ये सब तो सरकार के काम हैं। इनका काम तो सिर्फ़ प्रतिरोध है सो क़दम पीछे खींच लिए गए। ये सत्याग्रही टीम किसी ग्लैमर आइकॉन को खोज रही हैं जो इनका ब्रांड एम्बेसडर बन सके। उड़ती सी ख़बर है कि दुनिया के हर मुद्दे पर राय रखने वाली सोनम कपूर से सम्पर्क को प्रयासरत है ये टोली। वैसे तो सोनम कपूर भारत से थोड़ी ख़फ़ा ख़फ़ा रहती हैं। मगर इस कोरोना क्राइसिस में भारत में हो रही तैयारियों से काफ़ी संतुष्ट हैं। पहले वो लंदन के मुक़ाबले भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को कमतर बताती थीं इस बार लंदन वालों की स्वास्थ्य सेवाओं से नाख़ुश हैं।  इस बुद्धिमान स्त्री ने लोगों को ट्वीट करके बताया है कि बीमारी से संक्रमित गायिका  ने जब भारत में अपना कार्यक्रम दिया था तब संक्रमण उतना नहीं था और होली उसके बाद मनायी गयी थी। इनके तर्कों से सुना है आलिया भट्ट भी सहमत हैं, इस प्रकार की  विद्वता का समर्थन ऐसे लोग ही कर सकते हैं जिनकी विद्वता स्वयं बहुत उच्च कोटि की हो। इस स्वास्थ्य के संकट ने बहुत लोगों के रोज़गार के चोट तो की है मगर कुछ लोगों को रोज़गार दिया है। शूटिंग कैंसिल होने से बेरोज़गार बैठे सलमान खान ने अपनी पेंटिंग के काम को दुबारा शुरू कर दिया है। बरसों पहले अपनी पंचानवे लाख में बिकी पेटिंग से नाख़ुश सलमान खान हाल ही में दो करोड़ की पेंटिंग के चर्चे से ख़ासे बाउम्मीद हो उठे और फिर से घर बैठे पेंटिंग में हाथ आज़मा रहे हैं। सबसे बड़ी हैरानी तो ट्रेड पंडितों को अमिताभ बच्चन को लेकर हुई जो इस महत्वपूर्ण समय में सुरक्षा और सफ़ाई के किसी विज्ञापन के प्रचार-प्रसार के बजाय लोगों से इस समस्या से निपटने के तरीक़े बताते नज़र आये। सत्याग्रही टीम ने पहले सोचा था कि इस वीडियो को ही शेयर किया जाय, लेकिन अमिताभ बच्चन की स्थायी एंग्री यंग मैन की छवि को ध्यान में रखते हुए ये विचार उन्होंने त्याग दिया। वो ऐसा कुछ नहीं कर सकतीं जिसका क्रेडिट किसी मैन को मिले।

इस टीम का बड़ा फैंसी ध्येय वाक्य है -

"संवार नोक पलक अवरुओं में ख़म कर दे 
"गिरे पड़े हुए लफ़्ज़ों को मोहतरम कर दे"

टीम सत्याग्रही घरों में क़ैद है, आजकल पूरा परिवार एक दूसरे को बहुत समय दे रहा है। लोगों के गिले-शिकवे तो मिट रहे हैं मगर इस बात को लेकर भी गृहणियाँ थोड़ी असहज हैं कि पूरे दिन परिवार के लोग घर पर जुटे रहते हैं जिससे उनकी दिनचर्या में खलल पड़ रहा है, दो घड़ी की भी फ़ुर्सत नहीं। बाल-गोपाल सब हर दम घेरे रहते हैं कोई कहता है ये बना दो कोई कहता है वो खिला दो। जिन हाथों ने पिछले बहुत बरसों से सिर्फ़ मेमोरेंडम लिखे हों, उन हाथों को जब कुछ घरेलू काम करने पड़े वो भी घरवालों के प्यार, मनुहार और इसरार  की वज़ह से तो तो काफ़ी असहज लगा उन्हें, आदत जो छूट गयी थी। तब तक मोबाइल पर एक सत्याग्रही का मैसेज आया जिसमें उत्साह बढ़ाते हुए किसी ने कहा था -

"चमकने वाली है तहरीर तेरी क़िस्मत की 
कोई चिराग़ की लौ को ज़रा कम कर दे"

ये सुनते ही सत्याग्रही मैडम ने गृहस्थन की ज़िम्मेदारी को धता बताते हुए अपना लम्बा चौड़ा और क्रान्तिकारी भाषण शुरू कर दिया। उनके मियाँ जो होली वाली बोतल लाये थे उसी में थोड़ी बची थी। दो-चार बूँद उसमें से हाथों पे लगाया और कहा- "देखा ये अल्कोहल भी सैनिटाइज़र का काम कर सकता है और बाक़ी के दो-चार घूँट मारने के बाद  नाचते हुए फगुआ गाने लगे -

"हँसी, चिकोटी, गुदगुदी 
चितवन, छुवन, लगाव 
सीधे-सादे प्यार के 
ये हैं मधुर पड़ाव"

सत्याग्रही मैडम हँस पड़ीं, और फगुआ को पुरवाने लगीं। अब उन्हें जनता कर्फ़्यू से कोई उज़्र ना रह गया था।

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