गौरैया की मनुहार

01-06-2021

गौरैया की मनुहार

दिलीप कुमार (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

फुदक फुदक आयी गौरैया 
मुझसे लगी ये कहने
दाना पानी लेकर उड़ जाऊँ 
तंज मुझे अब नहीं हैं सहने 
 
मुझको घर आँगन से भगाया 
कंक्रीट में खोया घोंसला
इन घरों के जंगल में उलझी मैं 
टूट गया अब मेरा हौसला 
 
मेरा चहकना अब किसी को ना भाये 
कोई ना लाड़ -दुलार करे 
दाना चुगाना अब दूर की बातें 
हर कोई मुझ पर वार करे 
 
जब एक दिन मैं मर जाऊँगी 
छत पर ना आयेगी तब कोई गौरैया
बाल-गोपाल का लाड़ कैसे होगा 
किससे संग खेलेंगे बहना और भैया 
 
थोड़े उसको दाने डाले 
पानी पिलाकर उसे पुचकारा 
गौरैया रानी क्यों रूठी हुई हो 
किसने तुमको है ताना मारा 
 
कंक्रीट से डरना क्यों तुमको 
छोड़ो घास-फूस का घोंसला 
लकड़ी के घर तेरे लिए बनाये 
अब तो रखो थोड़ा हौसला 
 
सुन्दर उसमें दरवाज़े हैं लगाये 
खिड़की और बर्तन भी रखे 
क़िस्म क़िस्म के रखे पकवान 
जो जब चाहे जैसे चखे 
 
जन्मदिन तुम्हारा हम हैं मनाते 
दुनिया निकली तुम्हें बचाने 
चिंता ना करो गौरैया रानी 
गायेंगे लोग तुम्हारे ही तराने

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