गंदी बस्ती की अधेड़ औरतें

01-05-2021

गंदी बस्ती की अधेड़ औरतें

राजनन्दन सिंह (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

गंदी बस्ती की अधेड़ औरतें
अक़्सर अपने घरों में भीतर नहीं बैठतीं
अपनी चौखट अपने खाट पर 
परधाईन बने  पसरे 
गली में बैठी रहती हैं
बदन उघाड़े शायद गर्मी से परेशान
सामने टेबल पंखे से हवा लेती 
गली में राह चलती निगाहों को
बड़े अधिकार से घूरती हैं
राह चलती निगाहों से
वो अपना बदन नहीं ढकती
उन निगाहों को पढ़ती हैं
पता नहीं किस नज़र पर बेवज़ह
वह ख़ुशी से मुस्कुरा दें 
कुछ अच्छी बातें बुदबुदा दें
और किस नज़र को गुस्ताख़ बताकर
उसे अपने बदन की धौंस दिखा दें
जैसे खार खाये बैठी हों पहले से 
चुनी हुई दो-चार खरी-खोटी सुना दें
गंदी बस्ती की अधेड़ औरतें
अक़्सर अपने घरों में भीतर नहीं बैठतीं
बीच गली में खाट बिछाये
परधाईन बनी ऐंठी रहती हैं

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में