गलियों गलियों हंगामा है
स्व. अखिल भंडारीगलियों गलियों हंगामा है
घर में इक सन्नाटा सा है
कौन यहाँ रहता था पहले
अब वो शख़्स कहाँ रहता है
उजले उजले कपड़ों वाले
मिट्टी में क्या ढूँढ रहा है
बुझा बुझा सा उस का चेहरा
उस के दिल में क्या रहता है
ऐसा भी क्या ग़म है उस को
हँसते हँसते रो पड़ता है
अपनी मर्ज़ी के मालिक सब
कौन किसे समझा सकता है
गूंगे बहरों की बस्ती है
शोर मगर अच्छा ख़ासा है
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