गाँव

निलेश जोशी 'विनायका' (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

जहाँ प्रेम की फ़सलें होतीं
भावों की बरसातें होतीं
स्वार्थ बुलबुले यूँ मिट जाते
जब आपस में दो मिल जाते।
 
हरी भरी रहती चौपालें
मिलते थे कुछ कम ही ताले
घर कच्चे पर मन पक्के थे
मेरे गाँव के लोग भले थे।
 
गाँव की बातें गाँव में रहतीं
मुश्किल बातें यहीं सुलझतीं
कोर्ट कचहरी किसने जानी
मेरे गाँव की अजब कहानी।
 
बाहर था एक बड़ा शिवाला
पुजारी उसका बड़ा निराला
रोज़ सुनाता कथा रूहानी
मेरे गाँव की प्रथा पुरानी।
 
शाम सुहानी मेरे गाँव की
छम छम पायल गोरी पाँव की
मनमोहक रस्में अपनेपन की
याद दिलाती अपने प्रियजन की।
 
मेरा गाँव सुंदर अति प्यारा
है मुझको वह बहुत दुलारा
स्मृतियाँ शेष वहाँ बचपन की
उम्र चाहे हो जाए पचपन की।

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