एक नन्हा ज्योतिपुंज आशाओं का

15-08-2020

एक नन्हा ज्योतिपुंज आशाओं का

संजय नारायण (अंक: 162, अगस्त द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

तिमिर का अंतहीन विस्तार,
जीवन को जड़ कर गया,
योजनाएँ ध्वस्त हो चलीं,
सभी कुछ स्थिर हो गया,
संवादहीन शून्य में अब,
मरुधर विचरण करने को है,
वर्षा की रिमझिम बूँदें,
संकोच करने लगी हैं अब,
और कितनी परीक्षा है शेष,
सहनशक्ति की सीमा से परे।
समयांतराल को जब,
धैर्य ने थाम लिया...
तिमिर के विस्तार का,
अब अंत होगा,
एक नन्हा ज्योतिपुंज,
आशाओं का फैलाव लिए,
दृश्यमान  हो चला अब,
तपते  मरुधर  को,
शस्य श्यामला करने,
नवीन ऊर्जा का संचार,
बिखरी योजनाओं के,
कण कण एकत्रित कर,
विराट भवन बनाने को,
अब जीवन में होगा।
आशाओं के असंख्य दीप,
प्रज्वलित हो चले अब,
वर्षा ऋतु का-
स्वागत  करने को अधीर,
तिमिर के विस्तार का,
अब अंत हो चला... 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें