एक जांबाज़ की कथा

15-02-2021

एक जांबाज़ की कथा

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

 द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जर्मन सैनिकों को साइबेरिया के किसी इलाक़े में रूसी सैनिकों ने चारों तरफ़ से घेर लिया तो जर्मन कमांडरों ने अपने सैनिकों को बचाने के लिए हेलिकॉप्टरों का उपयोग किया। ख़ैर, जब एक ऐसा हेलीकॉप्टर एक स्थान पर उतरा तो पायलट ने सैनिकों को बताया कि यह आख़िरी उड़ान है क्योंकि रूसी सैनिक अब नज़दीक पहुँचने वाले हैं। उस जगह पैंतीस जर्मन सैनिक थे जबकि उस हेलीकॉप्टर में मुश्किल से तीस सैनिक घुस पाए। पायलट ने हेलीकॉप्टर से कुर्सियाँ आदि सामान हटा दिया ताकि कुछ और सैनिकों को अन्दर ठूँसा जा सके। सारी कोशिशों के बाद हेलीकॉप्टर के अन्दर चौंतीस सैनिक पहुँच पाए। नीचे सिर्फ़ एक सैनिक बचा था जिसके दोनों घुटने ज़ख़्मी थे। वह हेलीकॉप्टर उड़ान भरने वाला था कि उसके अंदर से एक युवा सैनिक नीचे कूदा और उसने उस ज़ख़्मी सैनिक को सहारा देकर हेलीकॉप्टर के अन्दर पहुँचाया। फिर उसने उस ज़ख़्मी सैनिक से कहा, "मैं तो अभी अविवाहित हूँ लेकिन आपका जाना ज़रूरी है। मैं जानता हूँ आपकी पत्नी और आपके बच्चे आपका
इंतज़ार कर रहे होंगे।"

पायलट ने इंजन स्टार्ट किया और कुछ ही देर में वह हेलीकॉप्टर आसमान में था। पायलट ने उस युवा सैनिक के सम्मान में हेलीकॉप्टर की "डाइव" लगाई। अन्दर मौजूद सभी सैनिकों ने उसे सैल्यूट किया। दुश्मनों के इलाक़े में छूटे उस जांबाज़ युवा सैनिक का क्या हुआ होगा? यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता - हाइकु
स्मृति लेख
लघुकथा
चिन्तन
आप-बीती
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
व्यक्ति चित्र
कविता-मुक्तक
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में