एक फ़रियाद मौत से भी

15-12-2019

एक फ़रियाद मौत से भी

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

जब कोई आस न रहे दिल में 
साँसों से साँस निकल जाए 
ऐ मौत! तू चली आना; 
जब ज़िंदगी मेरी बिखर जाए।


जब जीवन सूना लगने लगे 
तन्हाई मेरी निखर आए,
जब सौंप के मुझे, तेरे वास्ते -
चुपके से मेरा वक़्त गुज़र जाए।


जब दुनिया बोझिल लगने लगे, 
मेरे अपने ही मुझसे उबने लगे,
किनारे तक पहुँचाकर मुझको 
जब कश्ती ही मेरी डूबने लगे,


हो पूरा जीवन अध्यात्म मेरा 
रेत सा मुट्ठी से फिसल जाए 
उस वक़्त चली आना प्रिये, 
जब ज़िंदगी मेरी बिखर जाए।


जब लगे कि मेरे जीवन में
जीने की क़सर बाक़ी नहीं,
जब लगे कि राहें जीवन में
कोई संगी नहीं साथी नहीं,


जब लगे कि आहें भर-भरके 
मेरा जीवन मुझसे जुदा हुआ,
जब लगे क़ाफ़िला जीवन का
है डूबने को रुका हुआ,


जब लगे कि दुल्हन डोली में 
चलने को तैयार आई,
जब लगे कि घड़ी आ गई अब
जब होती है अंतिम विदाई,


जब लगे कि दोनों आँखों से 
गंगा जमुना निकल आए,
तत्क्षण चली आना प्रिये!
जब जिंदगी मेरी बिखर जाए।


हे प्रिये! मुझे मालूम है,
तुम एक दिन ज़रूर आओगी 
जीवन के रंग तो बहुत देखे 
मरने का ढंग तुम बताओगी,

 

हर दरवाज़े, गली, मंजिल पे 
खाएँ हैं बस ठोकरें ही
मुझे पता है अंत में तुम्हीं 
अपनी गोद में सुलाओगी,

 

तू अश्क नहीं रे, इन नैनों में, 
वैराग्य तू मेरे जीवन में,
ऐ मौत तू काली घटा नहीं; 
शृंगार तू मेरे यौवन में,


न साया कोई दुर्भाग्य का तू; 
न दाग़ है तू मेरे दामन में,
मेरे जीवन में क्या कमी है अब
जब तू मेरी अपनी है, यारब!

उस वक़्त चली आना;


जब बुढ़ापा कमर कसने लगे, 
बिता के उम्र मेरी अपनी;
जब ज़िंदगी मुझपे हँसने लगे,

हे प्रिये! तू चली आना; 
जब ज़िंदगी मेरी बिखर जाए।

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