एक दिन . . .

15-06-2021

एक दिन . . .

वन्दना दवे (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

एक दिन जब कभी 
इंटरनेट क़्रैश होगा 
चारों ओर अफ़रा तफ़री हो जाएगी 
आँकड़े ख़ूब सारे आँकड़े 
कहीं दफ़न हो जाएँगे 
लोग बदहवास से
इधर उधर भटकेंगे
जीना दूभर हो जाएगा 
महिलाएँ बच्चों से बार-बार पूछेंगी
बेटा वॉट्सएप फ़ेसबुक चला?
उस दिन बच्चे भूखे ही रह जाएँगे 
घरों में मातम सा छा जाएगा 
लेकिन 
खेतों में हर रोज़ की तरह
काम करते हुए स्त्री पुरुष 
किसान दिख जाएँगे 
घन से लोहा पिटता हुआ लोहार 
हमेशा की तरह 
पसीना बहा रहा होगा 
बाँसुरी बजाता
आदिवासी चरवाहा 
गोधूलि में घर को लौट रहा होगा
गाँव के बच्चे गोटियाँ खेलते
चिल्ल-पों करते हुए सुनाई दे जाएँगे 
पड़ोस में मज़दूर की बीवी 
सिलबट्टे पर मसाला पीसते हुए मिल जाएगी
एक दिन दुनिया डेटा विहीन हो जाएगी 
और
सरकारी डेटा/आँकड़ों के एहसान के बोझ से
किसान, मज़दूर, महिलाएँ, बच्चे आदि सब
मुक्त हो जाएँगे 
जब एक दिन इंटरनेट क़ैश हो जाएगा . . .!!

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