एक अधूरा मरा स्वप्न

15-06-2021

एक अधूरा मरा स्वप्न

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

उस अनोखे स्वप्न को,
स्मृति-पटल ने ले डुबाया।
काल के ही गाल में,
वह और भी गहरा समाया॥
 
अवलंबित था गहरी नींद पर,
कुछ देर ही ठहरा रहा।
करवटों की आहटों से,
न डरा, अविरल बहा॥
  
ला चुका था ज़िंदगी में,
वो अनागत दृश्य भी।
कल्पना के पर लगाए,
कुछ अनूठे परिदृश्य भी॥

पर स्वप्न की यह ख़ासियत है,
पूर्णता के पूर्व ही,
टूट जाता है कहीं,
तभी कहलाता स्वप्न वो, न होता सही॥

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