दूसरा आदमी

01-05-2021

दूसरा आदमी

जाफ़र अब्बास (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मेरे अन्दर का वह दूसरा आदमी  
बाहर आने की जिस को इजाज़त नहीं  
जिस में बाहर निकलने की हिम्मत नहीं  
आज तक उस को देखा किसी ने नहीं  
गो मुहज़्ज़ब1 नहीं है वह मेरी तरह  
है कहीं मुझ से ज़्यादा वह सच्चा मगर  
जब  मेरे पास कोई भी होता नहीं  
डरते डरते निकलता है तब वह ज़रा  
दो घड़ी मुझ से करता है बातें वह फिर  
ऐसी बातें जो हैं सिर्फ़ सच्चाइयाँ  
ऐसी बातें कि जिन पर हैं पाबन्दियाँ  
मेरे झूटों से करके मुझे शर्मसार  
फिर से वापस चला जाता है वह वहीँ  
मेरे अंदर है उस का ठिकाना जहाँ  
मेरे अन्दर का वह दूसरा आदमी  

1. मुहज़्ज़ब=शिष्ट, सभ्य, शिक्षित

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