दुख क्या होता है!
मुकुल शर्माआज अकेला बैठा सोच रहा हूँ,
कि दुख क्या होता है।
संतान जन्म पर माँ की पीड़ा,
क्या वह दुख है?
हर बात पर भाई बहन का झगड़ा,
क्या वह दुख है?
या बुरी आदतों पर पिता का लड़ना,
क्या वह दुख है?
अगर नहीं तो दुख क्या है?
कहते हैं भरोसे और विश्वास
पर दुनिया क़ायम है।
इन्हीं दो शब्दों के दम पर
तुम हो और हम हैं।
गर गिर रहे हो हम तो,
है भरोसा हमें कोई थामेगा।
है विश्वास किसी पर,
दुनिया की भीड़ में खोने नहीं देगा।
हर क़दम पर कोई,
हमारे साथ खड़ा रहेगा।
कैसी भी हो मुसीबत,
पर वह हमें रोने नहीं देगा।
शायद समझ आया कि,
दुख क्या होता है।
क्यों ख़ुश होकर भी
इंसान अंदर रोता है।
जिन दो शब्दों से कहते हैं,
दुनिया की पकड़ है।
मैं कहता हूँ यही दो शब्द,
हर दुख की जड़ है।
ना होता अगर थामने का भरोसा,
तो हर कोई सँभल कर चलता।
अपनी पहचान बनाता,
ना भीड़ में खोने का डर होता।
ना होता अगर विश्वास की,
कोई आँसू पोंछने आएगा।
मुसीबत बहुत हल्की लगती,
और ना कोई मायूस होता।