दुआ

डॉ. सुनीता जाजोदिया (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सड़क पर पसरे सन्नाटे को
तोड़ता जब चीत्कार करता
एंबुलेंस का सायरन
निर्मम महामारी के चंगुल में जकड़ी
रूह काँप उठती है
दुआ में हाथ उठ जाते हैं
होंठ बुदबुदाते हैं
ऐ मेरे मालिक! दयादृष्टि रखना 
आॉक्सिजन सिलेंडर और आइसीयू में 
एक बेड तैयार रखना
डॉक्टर बनकर तू सिरहाने रहना
दवाएँ मिल जाएँ वाजिब दाम
अकाल मौत से बिछड़े न
किसी का कोई प्यारा
बस इतनी सी तू कृपा करना।

1 टिप्पणियाँ

  • 1 Jul, 2021 07:07 PM

    वाह !दिल की बात कह दी । सचमुच एंबुलेंस को देख कर दिल घबरा जाता है और दुआ निकल जाती है । बहुत मार्मिक । दिल की बात दिल को छू गई

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