दोस्ती

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

पावन सा नाता जो न्यारा,
होता है दो मित्रों का।
बिन स्वारथ के प्रीत निभाएँ,
ये निचोड़ सब रिश्तों का।
 
पथ भ्रष्ट करे वह मित्र नहीं,
उससे तुम रहना दूर सदा।
खण्डित यदि विश्वास करे,
तो जीवित जाग्रत सी विपदा।
 
जिसके हाथों में फूल सजे,
पर मंज़िल में हों शूल बिछे।
ना बनना उसके मीत कभी,
आकर्षण कितना भी उपजे।
 
कृष्ण सुदामा जैसी मैत्री,
मिलती क़िस्मत वालों को 
विपदा मे जो साथ निभाये 
मीत कहाने लायक़ वो।

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