दो दिलों में आशिक़ी का रंग वो पैदा हुआ 

15-01-2021

दो दिलों में आशिक़ी का रंग वो पैदा हुआ 

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 173, जनवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

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दो दिलों में आशिक़ी का रंग वो पैदा हुआ 
इक धुआँ मिलकर हवा से प्यार में शोला हुआ 
 
कुछ तिज़ारत गार थे कुछ माहिरे तालीम थे 
सब हुआ पर ये बता कब आदमी इंसाँ हुआ 
 
पेच था हर पेच में मुझसे न कुछ सीधा हुआ 
यूँ रहा हूँ ज़िंदगी की ज़ुल्फ़ में उलझा हुआ
 
ख़्वाहिशों का इक सजीला जाल है ये ज़िंदगी
जा रहा था इक परिंदा गीत ये  गाता हुआ
 
कश्मकश में है कहीं हालात से लड़ता हुआ 
देखती हूँ हर तरफ़ इंसान को बिखरा हुआ 
 
इस उदासी का सबब बोलो कोई इसकी वजह 
बात जो भी है बता चहरा है क्यूँ उतरा हुआ 
 
बात दिल की कह न पाई आँसुओं की धार भी 
मैं ज़रा क्या मुस्कुराई एक अफ़साना हुआ 
 
फूल दिल का खिल गया काँटे भी कुछ प्यारे लगे 
इस तरह से ज़िंदगी में आप का आना हुआ 

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