दीया और हवा

01-06-2021

दीया और हवा

साई नलिनी (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

पहाड़ों  के पीछे  छुप-छुपकर
कोई पुराना गीत  गुन-गुनाकर
जलता   हुआ  दीया  बुझाकर
कहो! क्यों भटकती रहती हो हवा।
 
कौन से  अलग  शहर से आई 
किस के  लिए  संदेश ले आई 
पथ में  पग-पग  ठोकर  खाई
कहो! क्यों भटकती  रहती हो हवा।
 
दिन में  कहाँ  से  निकलती हो
सूनी  राहों में  कहाँ  रुकती हो 
छुपाती हो  क़दमों  की आहट 
बोलो! क्यों भटकती रहती हो हवा।
 
सुनो, कभी मत आना पास मेरे
मुझे हरना  ही है जहाँ से अँधेरे
अभी भी  वक़्त है  होने में सवेरे
जाओ! तुम  जाके  सो जाओ हवा।

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