दिन
मनोज शर्माएक और दिन
थका थका
घर बाहर
सब एक-सा
मन डूबता
पथ कुछ नया
अब नहीं सूझता
तुम आओ
एक बार फिर
कर दो हरा
रोक लो रफ़्तार
समय की
थाम लो पतवार
घोलकर मिठास
मन हर्षित कर दो
भय से मुक्त कर दो
मन मेरा
एक और दिन
थका थका
घर बाहर
सब एक-सा
मन डूबता
पथ कुछ नया
अब नहीं सूझता
तुम आओ
एक बार फिर
कर दो हरा
रोक लो रफ़्तार
समय की
थाम लो पतवार
घोलकर मिठास
मन हर्षित कर दो
भय से मुक्त कर दो
मन मेरा