दीये की पाती

15-11-2020

दीये की पाती

संजय वर्मा 'दृष्टि’ (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

टिमटिमाते दीये से पूछा 
महँगाई का हाल
मुस्कुरा के वो होले से बोल उठा 
 
मेरी तरह हर इन्सान त्रस्त है
मैं तो ईश्वर का माध्यम हूँ 
मेरी बदौलत ही इन्सान 
ईश्वर से जीवन में कठिनाइयों को 
दूर करने की चाह रखता है 
तो क्यों माँग लूँ ईश्वर से 
महँगाई दूर करने का वरदान 
मैं तो एक छोटा सा दीया हूँ
जो देता आया हूँ हर घर में 
विश्वास और आस्था का हौसला 
किन्तु मुझे भी डर है भ्रष्टाचारियों की 
आँधियों से –
जो मुझे बुझा ना दें 
सच्चाइयों के हाथों की आड़ लेकर 
ढाँप लो ज़रा मुझे 
अगर बुझ गया तो इन्सान कभी 
महँगाई कम होने का वरदान 
माँग न सकेगा ईश्वर से।

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