धुआँ आग से जब फ़ना हो गया

15-03-2021

धुआँ आग से जब फ़ना हो गया

अनिल 'मानव'  (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

 

धुआँ आग से जब फ़ना हो गया

उड़ा अश्क बनकर घटा हो गया

 

जो कल तक दो कौड़ी का मोहताज़ था

बुलन्दी पे पहुँचा ख़ुदा हो गया

 

ग़ज़ब इश्क़ की क्या शुरूआत थी 

मगर आख़िरी बेमज़ा हो गया

 

मैं मयकश नहीं था मगर क्या करूँ

तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो गया

 

मुक़द्दर किसी का पता ही नहीं

भला बोल क्यूँ अनमना हो गया

 

मैं चलता रहा हूँ बहुत दूर तक

सफ़र में ज़रा खुरदरा हो गया

 

ग़ज़ल को इशारे में कहते हैं सब

इशारे का अब दायरा हो गया

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