दस्तक (डॉ. दयाराम)

15-11-2019

दस्तक (डॉ. दयाराम)

डॉ. दयाराम

उम्र के अंतिम 
पड़ाव में 
मेरी मित्रता
बढ़ती जा रही है 
दरवाज़े पर पड़ती
थप-थप की दस्तक से
सुबह चार बजे
अख़बार वाले की दस्तक  
पाँच बजे 
चाय पीने के लिए दस्तक
सात बजे
दूध वाले की दस्तक
दस बजे
मिलने-जुलने वालों की दस्तक
ग्यारह बजे
डाकिये की दस्तक 
एक बजे
बच्चों की स्कूल से आने की दस्तक
दोपहर में
थक हार कर
कमरों की सुनसान के साथ
दस्तक भी थोड़ा सुस्ता लेती है
और
पाँच बजे
कामवाली बाई के साथ
फिर जाग जाती है
और
रात के नौ-दस बजे तक
रोज़ाना ही जागती रहती है दस्तक 
लगता है
अब मेरा जीवन
दस्तक ही हो गया है।

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