वह आनंदित मन से मोटर साइकिल चलाता हुआ जा रहा था कि ठीक आगे चल रही सिटी बस से धुँआ निकला और उसके चेहरे से टकराया, वह उत्तेजित होकर चिल्लाया, "ओये! ये गंदगी क्यों फैला रहे हो... निकम्मे कहीं के।" लेकिन बस तो यह जा और वह जा। 

वह बेचैन हो गया, उसी अवस्था में कुछ और आगे बढ़ा ही था कि उसकी मोटर साइकिल उछल गयी, सड़क पर पानी से भरा हुआ गड्ढा था, गन्दा पानी उछल कर उसके कपड़ों और जूतों पर आ गया। वह व्याकुल होकर वहीँ खड़े एक यातायात हवलदार से कहने लगा, “निकम्मे लोग भर्ती हैं, ज़रा सी बारिश आते ही सड़क खराब, हफ़्ते-हफ़्ते भर पानी भरा रहता है, पता है मेरे ऑफ़िस में आज फोटो सेशन है..." 

हवलदार उसे अनसुना कर मुँह मोड़ कर चला गया। उसने भी कपड़ों से आ रही बदबू पर नाक सिकोड़ी और मोटर साइकिल कार्यालय की ओर बढ़ा दी। 

वहाँ पहुँचते ही उसने अवलोकन किया, सभी साफ़-सुथरे कपड़े और चमचमाते जूते पहन कर आये थे। वह हीनभावना से ग्रस्त हो नज़र बचा कर अंदर जाने ही लगा था कि चपरासी ने उसे रोक दिया और कहा, "मालिक पीछे मैदान में बुला रहे हैं।"
वह सुस्त क़दमों से चलकर मैदान में पहुँचा। उसे अस्तव्यस्त देखते ही संस्था का मालिक चौंका, और उसे इशारे से अपने पास बुलाया। वह नज़रें झुकाए उसके पास गया। मालिक ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्करा कर कहा, "ये लो झाडू पकड़ो, स्वच्छता अभियान के लिए फोटोग्राफ सरकार को भेजने हैं, सब निकम्मे चमक रहे हैं, तुम मेरे साथ खड़े रहो, कोई तो ऐसा दिखाई दे कि सच में सफ़ाई की है।"

और उसे अचानक अपने कपड़ों से बदबू गायब होती अनुभव हुई।
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
लघुकथा
कविता
साहित्यिक आलेख
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में