दर्द से प्यार

21-02-2016

दर्द से प्यार

कीर्ति

अँधेरे में रहते रहते 
प्यार हो गया अँधेरे से,
और 
पहचाना रोशनी को।

एक चोट सी थी सीने में,
जब समय आया दवा लगाने का 
चोट भी बोली पलटकर 
वक़्त जाया किया 
मुझपर इतना 
पराया कर रहे हो 
मुझे, 
जब आदत हुई तो।

पता चला उन्हीं गड्ढों से 
धड़कनों की गति का,
पत्थर सा कठोर बन गया 
दरिया जैसा दिल भी,
छँट जाता है अन्धेरा भी 
वक़्त के साथ,
मायूसी मेरे चहरे की 
न जाने छँटेगी कब?

जब वक़्त आया
उबरने का दर्द से 
तब प्यार हो गया दर्द से।
सीख लिया तरीका जीने का,
बेवज़ह लोगों के आगे,
बहाना ढूँढ लिया हँसने का 
दर्द छुपाने का सलीक़ा!

तुम भी देख लो यारों,
ये बेरहम दुनिया 
तरक़ीबें खोजती है 
फ़ायदा उठाने की 
अब मत आना 
किसी की बातों में,
भरोसा मत करना 
ख़ुद से ज़्यादा 
किसी और पर!!

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