डर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र ’शरत’)

15-09-2019

डर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र ’शरत’)

सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्‌’

तुम गई 
तो मेरी क़िस्मत के
सारे सितारे 
अस्त हो गए।
वही
अकेलापन
खालीपन
जिसे 
भूलता जा रहा था।
वही 
फिर से
मेरे दिल का
दरवाज़ा खटखटा रहे हैं।
कभी नहीं डरा इनसे
लेकिन
अबकी 
ऐसा क्यों है कि
इन्हें अपनाने से
डर लगता है।
इनसे
नहीं
शायद 
अपने आपसे
डर लगने लगा है,
या
सपनों से 
डर लगने लगा है।

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