डर रह गया

01-08-2020

डर रह गया

अरुण कुमार प्रसाद (अंक: 161, अगस्त प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

आज सुबह 
कल जैसे ही मिले
रात में जो बीता
उसे लगे कहने-सुनने। 
भूख का दर्द,
इच्छा की पीड़ा। 
सुना। 
मन भीगा। 
शंकाएँ थीं 
सुलझ न पाया। 
सुलझा लेंगे कल 
कह लिए-
मुलाक़ात खत्म। 
डर रह गया। 

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