घूडन आज बहुत खुश था। आज उसके बेटे की शादी जो हो रही थी। उसने एक दिन पहले, संचार कालोनी जाकर सभी घरों में निमन्त्रण बाँट आया था। और सभी से शादी मे आने की कह भी आया था। वह यह भी कहना नहीं भूला था कि उसी शाम को उसने दावत का भी इन्तज़ाम किया है। शहर के नामी-गिरामी आचार्य भोजन पकाने के लिए लगाए गये हैं। अतः सभी को आने का आग्रह भी वह कर आया था और सभी ने उसे आश्वस्त किया था कि वे उसके बेटे की शादी मे ज़रूर आएँगे।

साल भर पहले तक घूडन उसी कालोनी मे सफ़ाई का काम किया करता था। जबसे उसके बेटे की सरकारी नौकरी लगी है, उसने सफ़ाई का काम बंद कर दिया था, बावजूद इसके वह प्रतिदिन कालोनी जा पहुँचता। लोगों से मिलता-जुलता। उनकी समस्या सुनता और उसे तत्काल दूर करने का प्रयास करता। उसके इस व्यवहार से कालोनी के लोग उससे खुश रहते थे कभी कोई चाय पिला देता तो कभी कोई नाश्ता करवा देता। दीपावली-दशहारा पर उसका सभी को इंतज़ार रहता ।इस् समय उसे ढेरों बख़्शीश भी मिल जाया करती थी।

दूसरे शहर बारात ले जाने की अपेक्षा उसने लड़की पक्षवालों को यहीं बुलवा लिया था और अपनी ओर से उसने सारे प्रबंध भी करवा दिए थे ताकि उन्हें कोई परेशानी न उठानी पड़े। शादी का शुभ मुहूर्त शाम का था, अतः सुबह होते ही वह कालोनी जा पहुँचा और सभी को याद दिला आया था। सभी ने वहाँ पहुँचने की हामी कर दी थी।

बारात लग चुकी थी। उसके बाद के सारे नेग-दस्तूर निपटाए जा रहे थे, लेकिन घूडन की नज़रें गेट पर लगी हुईं थी। वह बेसब्री से साहब लोगों के आने का इन्तज़ार कर रहा था। धीरे-धीरे लोगों का आना शुरू हुआ, घूडन हाथ जोड़कर उन सभी का अभिवादन करता और भोजन करने के लिए आग्रह करता। किसी ने कहा कि आज उसके पेट में दर्द है तो किसी ने ब्रत रखे जाने का बहाना बतलाकर भोजन करने में अपनी असहमती जतलायी। घूडन रसोई-घर मे जाकर ब्राह्मण को भोजन पकाते हुए देख आने की कहता। लेकिन आगुन्तकों के बहाने अपनी जगह पर कायम थे।

लोग स्टेज पर जाकर वर-वधु को आशीर्वाद देते। जेब से निकाल कर बंद लिफ़ाफ़े देते और वापिस हो लेते। वह उनके जाने से पहले एक डिब्बा वह लोगों को देता जाता जिसमे शुद्ध खोये की मिठाइयाँ रखी गईं थी।लोग उसे धन्यवाद देते हुए लौट रहे थे। घूडन इस बात पर ख़ुश हो रहा था कि लोगों ने उसकी भेंट स्वीकार तो की।

दूसरा दिन तो मेहमान नवाज़ी में कैसे बीत गया, पता ही नहीं चल पाया। अगले दिन सुबह जब वह कालोनी के निवासियों को धन्यवाद देने गया तो उसने कूड़ाघर में उन्हीं डिब्बों को पड़ा पाया, जो उसने एक दिन पहले लोगों के बीच बाँटे थे। वहाँ कूड़ाघर मे आवारा पशुओं तथा कुत्तों की भीड मची हुई थी जो मिठाइयों की दावत उड़ा रहे थे। घूडन से यह सब देखा नहीं गया और वह उलटे पैर वापिस लौट आया था। उस दिन के बाद से उसने उस कालोनी मे जाना बंद कर दिया था।

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