दादी का संदूक!
डॉ. सत्यवान सौरभस्याही-क़लम-दवात से, सजने थे जो हाथ!
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ!!
बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद!
मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद!!
मुझको भाते आज भी, बचपन के वो गीत!
लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत!!
मूक हुई किलकारियाँ, चुप बच्चों की रेल!
गूगल में अब खो गए, बचपन के सब खेल!!
छीन लिए हैं फोन ने, बचपन के सब चाव !
दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव!!
बचपन में भी ख़ूब थे, कैसे- कैसे खेल!
नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल!!
यादों में बसता अभी, बचपन का वो गाँव!
कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव!!
लौटा बरसों बाद मैं , उस बचपन के गाँव!
नहीं बची थी अब जहाँ, बूढ़ी पीपल छाँव!!
नहीं रही मैदान में, बच्चों की वो भीड़!
लगे गेम आकाश से, फोन बने हैं नीड़!!
धूल आजकल चाटता, दादी का संदूक!
बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बन्दूक!!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सामाजिक आलेख
-
- अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
- घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है
- टेलीविज़न और सिनेमा के साथ जुड़े राष्ट्रीय हित
- तपती धरती, संकट में अस्तित्व
- दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है
- नए साल के सपने जो भारत को सोने न दें
- रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला
- समय की रेत पर छाप छोड़ती युवा लेखिका—प्रियंका सौरभ
- समाज के उत्थान और सुधार में स्कूल और धार्मिक संस्थान
- सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव
- सोशल मीडिया पर स्क्रॉल होती ज़िन्दगी
- साहित्यिक आलेख
- दोहे
-
- अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
- आशाओं के रंग
- उड़े तिरंगा बीच नभ
- एक-नेक हरियाणवी
- कायर, धोखेबाज़ जने, जने नहीं क्यों बोस!!
- क्यों नारी बेचैन
- गुरुवर जलते दीप से
- चलते चीते चाल
- टूट रहे परिवार!
- दादी का संदूक!
- देख दुखी हैं कृष्ण
- दो-दो हिन्दुस्तान
- पिता नीम का पेड़!
- फीका-फीका फाग
- बन सौरभ तू बुद्ध
- बैठे अपने दूर
- मंगल हो नववर्ष
- रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम
- सहमा-सहमा आज
- हर दिन करवा चौथ
- हर दिन होगी तीज
- हिंदी हृदय गान है
- सांस्कृतिक आलेख
- ललित निबन्ध
- पर्यटन
- चिन्तन
- स्वास्थ्य
- सिनेमा चर्चा
- ऐतिहासिक
- कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-