कोरोना का रोना 

15-07-2020

कोरोना का रोना 

लक्ष्मीनारायण गुप्ता (अंक: 160, जुलाई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

ताल किनारे महुआ महकी
कूप किनारे चम्पा गमकी
आम्र खेत में दिखे न झूले  
वर्षा फिरती बहकी बहकी
  

सावन मास उदासी बहना
हाथ लिए राखी का गहना
कैसे जाऊँ, भाई  बुलाऊँ
राह रोक कर खड़ा कोरोना
 

भौजाई भी फँसी  मायके
राखी पर क्या करे आयके
सावन का अब चुभे न घाटा
भ्रात प्रेम के सम्मुख नाटा
 

कलयुग और कोरोना घाती
दलते मूँग सभी की छाती
एक राशि की जुगलबन्दियाँ
नए नए उत्पात मचाती

 
निसर्ग भूप है फ़सल ख़ूब है
भारत भी  अभिनव रूप है
चाइनी विस्तारवादिता   
विश्व को टिड्डी स्वरूप है।

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