चुटकुले की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

17-10-2016

चुटकुले की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

उमेन्द कुमार चन्देल

सार-संक्षेप

चुटकुले का आशय रोचक प्रसंग या चमत्कारपूर्ण उक्ति से लगाया जा सकता है। मानव जाति चेतन है। इसी चेतनायुक्त काल्पनिक प्रतिभा के माध्यम से वह रवि को भी पछाड़ देता है। इस शक्ति का प्रयोग वह अपने अंर्तबाह्य विकास एवं मनोविनोद के लिए करता रहा है। तथा जीवन यापन करते हुए वह अपने आस-पास की जीवन शैली से तथा आपसी संबंधों को मज़बूत बनाने का प्रयास करता है। अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के फलस्वरूप अपनी भावनाओं, विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम ढूँढ लेता है।

गद्य की विधा चुटकुला मनोविनोद का सशक्त माध्यम है। जब व्यक्ति किसी घटना स्थान या परिस्थिति के संदर्भ में हास्यपूर्ण कथन या वार्तालाप करता है, वही लघु गद्य रूप चुटकुला है। चुटकुले को हास्य-व्यंग्य का गद्य हाइकु कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह भावभिव्यक्ति का भी एक सशक्त माध्यम है। इस विषय पर मैं अपना लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

 

चुटकुले की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

भूमिका -

चुटकुला का आशय रोचक प्रसंग या चमत्कारपूर्ण उक्ति से लगाया जा सकता है। मानव जाति चेतन है। इसी चेतनायुक्त काल्पनिक प्रतिभा के माध्यम से वह रवि को भी पछाड़ देता है। इस शक्ति का प्रयोग वह अपने अंर्तबाह्य विकास एवं मनोविनोद के लिए करता रहा है। तथा जीवन यापन करते हुए वह अपने आस-पास की जीवन शैली से तथा आपसी संबंधों को मज़बूत बनाने का प्रयास करता है। अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के फलस्वरूप अपनी भावनाओं, विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम ढूँढ लेता है।

गद्य की विधा चुटकुला मनोविनोद का सशक्त माध्यम है। जब व्यक्ति किसी घटना स्थान या परिस्थिति के संदर्भ में हास्यपूर्ण कथन या वार्तालाप करता है, वही लघु गद्य रूप चुटकुला है। चुटकुले को हास्य-व्यंग्य का गद्य हाइकु कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह भावभिव्यक्ति का भी एक सशक्त माध्यम है। हास्य और व्यंग्य में मूल अंतर यह है कि हास्य पाठकों को विशुद्ध मनोरंजन देता है जबकि व्यंग्य मनोरंजन के साथ-साथ एक स्वस्थ विचार की भावना पैदा करता है तथा अन्याय, शोषण, कुरीति, दुराचार, अनाचार, पाखंड, भाई-भतीजावाद, व्यक्ति की मुखौटेबाज़ी से अवगत कराकर उनसे दूरी बनाने की सीख देता है।

चुटकुले के माध्यम से हम चलते-फिरते हुए भी या महफ़िलों में भी लोगों को हँसा सकते हैं। चुटकुला सुनने के बाद लोग हँसी से लोटपोट हो जाते हैं। चुटकुले से संबंध रखने वाले महत्वपूर्ण नाम, जो हमेशा से चर्चा में रहे, वे हैं- तेनालीराम, कृष्णचंद्र, अकबर-बीरबल। इनके संबंध में लोगों के बीच प्रचलित चुटकुलेबाज़ी इसकी ऐतिहासिकाता का भी प्रमाण है। चुटकुले के रूप में राज्य-समाज में इन्हें उच्च श्रेणी में रखा गया है। यह चतुराई व हाज़िर-जवाबी का संकेत भी करता है। जिसे चुटकुला कहा जाता है, इसकी शास्त्रीय, वैज्ञानिक लिखित परम्परा प्राप्त नहीं है। आज इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट) व मनोरंजन प्रधान पत्रिकाओं, पुस्तकों के माध्यम से चुटकुले के लिखित स्वरूप का विकास हो रहा है।

"व्यंग्य क्या है? क्यों है? व्यंग्य का "कखग" क्या है? और "क्षत्रज्ञ" क्या है? व्यंग्य कब से है और कब तक रहेगा? व्यंग्य किस देश-प्रदेश, भाषा, जाति, समुदाय में अधिक प्रचलित है? आदि अनेक प्रश्न गत दशक में हवा में ख़ूब उछले या उछाले गये।"1

"हमारे देश में "भेड़-चाल" की परम्परा के अनुरूप जब अनेक "व्यंग्यकार" बिना समुचित तैयारी के मैदान में उतरे तो इसके स्तर का क्षरण तो होना ही था। फिर कई पत्रिकाएँ जन्मी जिन्होंने मुफ़्त में व्यंग्य छापना शुरू किया। अब तक तो सभी जानते हैं, कि इस अर्थयुग में जब एक-एक मुस्कुराहट बिकती है, हारे हुए व्यंग्यकारों ने अपने इधर-उधर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं से बैरंग लौटाए व्यंग्य को फिर नई-नई पत्रिकाओं में छपवाना शुरू किया।"2

अच्छे कवि और कहानीकार, उपन्यासकार हिन्दी में अनगिनत हैं, किन्तु व्यंग्यकार तो गिनती के ही हैं, और गिनती के ही रहने वाले हैं। व्यंग्य बहुत अधिक ज्ञान, बेहतरीन लेखकीय पृष्ठभूमि धीरज भाषा शैली पर नियंत्रण और मौलिक सूझ-बूझ की माँग करता है। जिसे बातों में से बातें निकालना आता हो, जो तिल का ताड़ बना सके, जो स्वयं पर हँस सके, जो उपहास सह सके, जो उपेक्षा से उदास न हो, जो रोते हुए को हँसा सके, जो प्रतिक्षण नई से नई बात जानने की तीव्र जिज्ञासा रखता हो। ऐसा व्यक्ति ही इस क्षेत्र में लम्बे समय तक टिक सकता है।

चुटकुले का क्षेत्र विस्तृत व विभिन्न विषयी है। कहीं सफ़र में, कही बैठे-ठाले कहीं मंच पर, कहीं सम्मेलन आदि में उनके स्थानों, परिस्थितियों पर चुटकुले का प्रयोग कर उपस्थित लोगों से तालियाँ पाने व लोगों को हँसाने के लिए अनायास ही वह प्रवृत्त हो जाता है। चुटकुले की व्यापकता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि मानव समाज के प्रत्येक विषय, घटना तक इसकी पहुँच दिखती है।

चुटकुला (हास्य) और व्यंग्य में मूल अंतर यह है कि हास्य पाठकों को विशुद्ध मनोरंजन देता है, जबकि व्यंग्य मनोरंजन के साथ-साथ एक स्वस्थ विचार की भावना पैदा करता है तथा कथनी और करनी के अंतर को स्पष्ट करता है। व्यंग्य का उद्देश्य व्यक्ति और समाज की बुराईयों के प्रति विचारों के माध्यम से एक बेहतर समाज की कल्पना को जन्म देना है और यही व्यंग्य की सार्थकता है। व्यंग्य केवल मनोरंजन का साहित्य नहीं है, व्यंग्य की रचनाधर्मिता व्यक्ति की कुत्सित मानसिकता को कुरेदती है ग़लत के प्रति तिलमिला देने वाला प्रहार करती है तथा स्वस्थ मानसिकता के निर्माण की भूमिका बनाती है।

रसों की संख्या प्रमुख रूप से नौ मानी जाती है, जिनमें से हास्य रस का स्थायी भाव हँसी है यह हास्य चुटकुले का ही परिणाम है। जिसे इस उद्धरण के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-

"कहा बन्दरिया ने बंदर से, चलो नहायें गंगा।
बच्चों को छोड़ेंगे घर में होने दो हुड़दंगा॥"3

चुटकुला में व्यंग्य भी होता है। व्यंग्य इसकी प्रमुख विशेषता है। वस्तुतः यह हास्य तथा व्यंग्य का मिश्रित स्वरूप है। चुटकुला में निहित व्यंग्य इसे जीवंत व प्रभावी बनाता है। किसी भी विषय घटना को चुटकुलेबाज़ हास्य में पिरोकर अपनी हाज़िर-जवाबी से कुछ ऐसे प्रस्तुत करता है कि गंभीर व दुखद विषय पर भी हँसी छूट जाती है, यही चुटकुले और चुटकुलाकार की उपलब्धि है। चुटकुले के स्वरूप को कतिपय बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. सामाजिक संबंध प्रधान चुटकुला
  2. राजनीतिक चुटकुला
  3. धार्मिक चुटकुला
  4. जाति परक चुटकुला

1. सामाजिक संबंध प्रधान चुटकुला-

इस प्रकार के चुटकुलों में समाज में रहने वाले लोगों को दृष्टि में रखकर ऐसा चुटकुला तैयार किया जाता है या बोला जाता है कि सामने वाले अपनी हँसी को रोक नहीं पाते हैं।

जैसे-

"दिनेश ने पिता से कहा - पिता जी, मैंने पहले ही कहा था कि इस नौकर के रंग-ढंग ठीक नहीं लगते, इसे चोरी करने की आदत हैं।"
"क्या हुआ आखिर?" पिता ने उसकी बात काटते हुए पूछा।
"होना क्या था, जो पेन आप दफ़्तर से उठाकर लाये थे, उसे लेकर चलता बना।"4

 

"एक लड़का शादी के लिए लड़की देखने गया तो उसने लड़की से अकले में मिलने के लिए उसके घर वालों से आग्रह किया, सब मान गये और दोनों को अकेले छोड़ दिया गया तो दोनों एक दूसरे को आश्चर्य से देखते रहे, फिर लड़की बोली भैया आप लोग कितने भाई-बहन हैं।
लड़का बोला पहले चार थे, अब आपको मिलाकर पाँच हो जाऐंगे।"

2. राजनीतिक चुटकुला-

इस प्रकार के चुटकुला का प्रयोग हमारे राज नेता एक दूसरे के ख़िलाफ़ करते हैं, जिससे लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच सकें।

जैसे-

"मंहगाई पर एक नेता भाषण देते हुए दूसरा नेता के भाषण का जवाब इस अंदाज़ में पेश करता है।
दाल का भाव 50 रुपये करना है। नहीं, 100 कर दिया, चलो 180 रुपये कर दिया ठीक हैं"

 

"नेता (सेक्रेटरी से)- मैं भाषणों में जनता से जो-जो वायदे करूँ तुम उसे झट से नोट कर लेना।

सेक्रेटरी (आश्चर्य से)- जी?

नेता- क्योंकि चुने जाने के बाद मैं भूल जाना चाहता हूँ।"5

3. धार्मिक चुटकुला-

इस तरह के चुटकुलों में लोगों के अनेक ग़लत व्यवहारों का अच्छी तरह से मज़ाक उड़ाया जाता है। क्योंकि ये लोग धर्म के नाम पर बहुत अधिक दिखावा करते हैं। यथा-

"पंडित जी, क्या यह उचित है कि कोई आदमी किसी की ग़लती का फ़ायदा उठाए?

"नहीं बिल्कुल नहीं," पंडित बोला।

"तो फिर आप वे रुपए वापिस कर दीजिए जो मैंने आपको शादी करवाते समय दिये थे।"6

 

"एक पादरी ने बारिश के लिए विशेष प्रार्थना का आयोजन किया। बाद में उन्होंने अपने साथियों से कहा- "मैं यह कहने पर विवश हूँ कि लोगों को प्रार्थना की शक्ति पर अधिक विश्वास नहीं था। उनमें से एक भी अपने साथ छतरी लेकर नहीं आया।"7

4. जातिपरक चुटकुला-

इस प्रकार का चुटकुला किसी विशेष जाति या समुदाय के संदर्भ में होता है जिससे उसकी स्थिति स्पष्ट हो जाए। यथा-

"शिक्षक- प्राचीन लंका को सोने की लंका क्यों कहा जाता था?
छात्र- इसलिए कहा जाता था क्योंकि कुंभकर्ण दिन-रात सोता था।"

 

"माली के बेटे श्यामू को उसके दोस्त ने कहा- श्यामू, तुम कल बगीचे में बने शेर के मुँह में सिर फसा कर क्यों लटके हुए थे?
श्यामू- मैं साहसी बनने का अभ्यास कर रहा था।"8

निष्कर्ष

मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, चाहे वह सुख का समय हो या फिर दुख का, चुटकला प्रयोग में लाया जा रहा है। मनुष्य अपने अवसाद को भुलाना चाहता है और चलते-फिरते वह चुटकुले के माध्यम से मन के बोझ को कम करने का प्रयास करता है। साहित्य की बहुत सारे विधाएँ हैं जिनमें से फुटकर के रूप में चुटकुला है। यह कहीं न कहीं हमारे ग़लत कार्यों को वयंग्यात्मक ढंग से पेश भी करता है। आने वाले समय में चुटकुला का विस्तार होने की संभावना बढ़ गई है।

संदर्भ ग्रंथ सूची-

1. शर्मा डॉ.कमलेश- व्यंग्य! व्यंग्य! व्यंग्य! क्लासिक पब्लिशिंग हाऊस- जयपुर प्रथम संसकरण- 1994
2. कस्तूरी दिनेश- सुकुल की भैंस (व्यंग्य संग्रह) क्वालिटी प्रिंटर्स 10, गौशाला लाईन रायगढ़ (म.प्र.) प्रथम संस्करण-1990
3. चातक डॉ. गोविंद- आधुनिक हिंदी शब्दकोश तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 प्रथम संस्करण-1986
4. खान शाहरूख- चटपटे चुटकुले लक्ष्मी प्रकाशन 4734, बल्लीमारान, दिल्ली-110006
5. वही।
6. वही।
7. वही।
8. वही।

शोधार्थी
उमेंद कुमार चंदेल
हिन्दी-विभाग
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़
मो. नं.-9589698005

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