चूड़ियाँ

15-03-2021

चूड़ियाँ

अलका 'सोनी' (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हाथों में सजने से पहले
मोहकता से खनकने के पहले
प्रिय को रिझाने से पहले
कलाइयों को 
अपने रंग ओ’ आब से
दमकाने से पहले
गुज़रती हैं ये चूड़ियाँ
तपते और दहकते
अँगारों से,
पिघलती हैं मोम सी ....
और झुलसा देती हैं
कितने ही बचपन
 
उसी ताप में जलकर
चिपके रह जाते हैं
कितने फूल. . .
खिलने से पहले,
देकर अपनी मासूम हँसी
और हर रंग 
अपने जीवन का
वे सजाते हैं चूड़ियाँ
नगों से, मोतियों से
 
कई सपनों और
उम्मीदों को बेरंग
करती ये चूड़ियाँ
तय करती हैं 
ताप से शृंगार 
तक का सफ़र
और सज उठता है
किसी नवयौवना का रूप।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में