छोटे लोग

15-07-2021

छोटे लोग

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

किसन ने अपनी धुली-धुलाई  चमचमाती रिक्शा को स्कूल की दीवार के कोने से सटे बड़े से पीपल की ओट में रोका और सावधानी से मुनिया और उसकी माँ को उतारा।

यूँ तो वो रोज़ ही स्कूल आता था, बच्चों से चहकती हुई, लदी-पदी रिक्शा लेकर, पर आज का दिन कुछ ख़ास था। उसने साफ़-सुथरे सफ़ेद कुर्ता और धोती पहन रखे थे। मुनिया की माई ने भी आज अपने बक्से से निकाल कर सबसे अच्छी साड़ी पहनी थी और मुनिया की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न था। उसने कई वर्ष बाद, नई फ़्रॉक जो पहनी थी!

आज नई क्लास में दाख़िले का दिन था और वे भी  अरमानों और हिम्मत की पोटली जुटाकर, प्रिंसिपल मैडम से विनती करने पहुँचे थे कि बिटिया का भविष्य सुधर जाए, जो उसे उनकी छत्रछाया मिल जाये!

लाइन में लगे लोगों का रौब और रुतबा देखकर एक बार तो मन डूबा और पैर ठिठके, फिर आस का दामन थामे, राम का नाम जपते, वे भी लाइन में लग गए . .

आस-पास के लोगों ने वही किया जो अक़्सर किया करते हैं . . . नाक-मुँह सिकोड़े  . . . और खुसर-पुसर करने लगे . . . 'ज़ुर्रत तो देखो, कहाँ हम और कहाँ ये . . . जाने क्या सोच कर चले आते हैं . . .'

बारी आने पर वे कमरे में हाथ जोड़कर दाख़िल हुए तो प्रिंसिपल मैडम आश्चर्य से बोली, "अरे, आओ किसन, कैसे आना हुआ, सब ठीक तो है," . . . फिर साथ मे पत्नी और मुनिया को देख असमंजस में पड़ गईं . . . 

"मैडम जी, ई हमार पत्नी और बिटिया है, . . . छोटो मुँह बड़ी बात . . . बस ईको आप अपनी सरन में ले लो  . . . जी, बहुतई हुसियार है . . . जब मोहल्ले का दूसरा बचवा तोतली भासा मे बोलना सीख रहे थे, ई, अपनी माई को सुन-सुन कर पूरा गायत्री मन्त्र बाँच लेती थी . . . "

" . . . पर किसन, यह इंग्लिश मीडियम स्कूल है, तुम उसे कैसे  पढ़ाओगे . . . होमवर्क आदि कैसे कराओगे?"

"आप वा की चिंता कोनो मत करो जी, मैं दुगुनी महनत करके उसके लिए टूसन लगा दूँगा . . . उसकी माँ भी और काम पकड़ लेगी।  . . . हम उसे पढ़ावे का काबिल नहीं तो क्या,  पढ़-लिखकर, वो तो हमें और अपने आने वाले बचवा को पढ़ा सकत है। मैडम जी, हम गरीबन का जीवन में, ऐसन अवसर बड़े भाग से मिलत है . . . "

दोनों भीगी पलकें लिए कमरे से बाहर निकले . . . .

मुनिया दाख़िला पत्र हाथ में लिए ख़ुशी से उछल रही थी . . . उसे मैडम जी ने नया नाम भी तो दिया था – गायत्री!

लोग  एक बार फिर से नाक मुँह सिकोड़ कर, काना फूसी करने लगे . . . 

"कैसे दिन आ गए हैं, अब हमारे बच्चे इन 'छोटे लोगों' के बच्चों के साथ पढ़ेंगे . . . !"

1 टिप्पणियाँ

  • बहुत अच्छी लघुकथा प्रीति! भविष्य की आस जगाती और प्रिंसिपल की संवेदनशीलता को मुनिया के नए नाम में दर्शाती। बहुत बधाई।

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