छोरी की बात
डॉ. रानी कुमारीरात घणी छोरी अकेली।
कोये साथ ना सहेली
भीतरला तड़पै है
कोई कोन्या साथ मैं
भतेरी देखी बाट पर
कोई ना फटका पास मैं
मन बिचलै बार-बार
काल भरी इस रात मैं
क्यूँकरं समझाऊं री
भीतरले नै यो बात मैं
यो दुनिया की रीत सै
छोरी कोई रहवै ना अपणा घर
जिस घर नैं मां बाप घाल दे
वो ही सै उसका अपणा घर
सोचूं मन की मन
बीराँ मैं दिन-रात
न्यू क्यूंकर बैरी जग मैं
बणेगी मेरे मन की बात
दो घरां की चाक्की मैं
हाल मेरा के होगा
अपणा घर जिब अपणा नहीं
गैर बिराणा के होगा
नाल गड़ी जिस घर आंगण
कदर नहीं जिब वहाँ
दूसरा कोई के करेगा
अपणा नैं ही जिब चोट करी
दूसरा क्यूँ कसर करेगा ?
रोणे हैं दिन रात के
शूल चुभै हर बात के
तीर चला कै न्यूँ बूझै
छोरी बता हुई बात के?