छोड़ देने के काम भी माँ आई
डॉ. विनय ‘विश्वास’छोड़ देने के काम भी माँ आई
जा चुका अमरीका जाने वाला जहाज़
कोई कह गया
माँ का कलेजा धक् से रह गया
‘’नहीं-नहीं... लोग यूँ ही कह रहे होंगे
चिंटू तो सामान की जाँच कराने गया है
कह गया है- यहीं बैठी रहनी माँ... अभी आया
उसने सुबह से कुछ नहीं खाया
आते ही पहले उसे कुछ खिलाना है
अमरीका तो हम दोनों को साथ ही जाना है
पर बेटे का मखमली रास्ता देखते-देखते
माँ की नज़र पथरा गई
बेटा नहीं आया... रात आ गई
रात आँखों में काटी बैठे-बैठे वहीं
सुबह तो हुई पर माँ की सुबह ... हुई ही नहीं
सफ़ाई करने वाले ने झकझोरा तो करना पड़ा यक़ीन
पाँवों के नीचे से निकल गई ज़मीन
हाँ! वो जहाज़ चला गया
मेरा आँचल
मेरे ही दूध से छला गया
ये सुंदर-सी लाठी वही लाया था अमरीका से
कहता था- पापा तो रहे नहीं... तेरा क्या रक्खा है यहाँ
तुझे ले चलूँगा वहाँ रहना महारानी की तरह
उसके पिता हूबहू झलक रहे थे उसकी क़द-काठी में
बेचते हुए क्या पता था कि हमारा चौमंज़िला मकान
इस तरह बदल जाएगा
एक सूखी लाठी में
कैसे... इस मन को आख़िर कैसे समझाऊँ
तुम्हीं बताओ चिंटू के पापा अब क्या करूँ कहाँ जाऊँ
तुमने तो कहा था कि मकान कभी मत बेचना
पर मकान बेचकर ही आई थी
चिंटू के उदास चेहरे पर तुम्हारे जैसी मुस्कान
नहीं... किसी नाते-रिश्तेदार के यहाँ नहीं जाने वाली मैं
इस बूढ़ी गर्दन की नसों में अभी ज़िंदा है
तुम्हारा स्वाभिमान
इस स्वाभिमान के सहारे ही जीकर दिखाऊँगी
अपने उसी मकान में जाऊँगी
उसे ख़रीदने वाले लोग अच्छे दिखाई देते थे
वो ज़रूर मेरा कहा कर देंगे
मुझे चौका-बासन करने को अपने यहाँ रख लेंगे
राम जाने कैसा है ये इम्तिहान
...जीना मुश्किल है, मरना आसान
मर तो जाऊँ पर मन में एक ही बात आती है
कि चिंटू के पास बहोत पैसे थे
कोई छीन के उसे ख़ाली छोड़ दे
तो भी उसका हौसला न हिले
और कभी वो अपने घर की तरफ़ आ निकले
तो ऐसा न हो कि उसे कोई न मिले!