चीख़ें

संजय वर्मा 'दृष्टि’ (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सड़कों पर पड़े गड्ढों को 
देखकर लगता 
मानों धरा की त्वचा पर 
रिस रहा हो घावों से ख़ून।
 
गड्ढों में
गिर जाते कई इंसान 
फिर सन जाती सड़कें ख़ून से 
और बन जाती ख़बरें 
हमेशा की तरह सुर्ख़ियों में।
 
सड़क अपने घाव ठीक करने को 
किसे कहे?
वो इसलिए इंसानों को 
गिराती है गड्ढों में
ताकि इंसान अपने घाव को 
ठीक करने के साथ 
दिल से निकली बद्दुआएँ 
जो होती नहीं सड़कों के लिए।
 
होती हैं जिनके लिए 
वह नाम होता अनाम 
जो बेसुध पड़ा है
कानों में रुई ठोंसे 
ताकि गिरते पड़ते लोगों की 
चीख़ें उन्हें 
सुनाई न दें।

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