चौराहा

निर्मल कुमार दे (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मैं चौराहा हूँ
चारों दिशाओं की ख़बर रखता हूँ;
मेरे सीने में है बंद शहर का इतिहास,
बंद है ग़रीब की आह, पापियों का पाप।
 
निर्दोष को पिटते देखा,
भिखारन को रोते देखा
पुलिस की मुट्ठी गरम करते देखा
देह का सौदा करते देखा, अलक्ष्य,वचुपचाप।
 
ईमान को बिकते देखा,
चावल में कंकड़ मिलाते देखा
झोपड़ी को महल में बदलते देखा
उचक्के को नेता बनते देखा
कई को जेल में सड़ते देखा
किए बिना अपराध।
 
मैं चौराहा बहुत बेचारा!
सीने में दफ़न है मेरे,
समय का परिहास।
मैं चौराहा हूँ,
चारों दिशाओं की ख़बर रखता हूँ!

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