मूँछों वाले दाढ़ी वाले,
चाचा कितने अच्छे हैं।

सुबह सुबह तो घर पर आकर,
पहले तो मुस्काते हैं।
मेरी एक हथेली पर फिर,
चाकलेट धर जाते हैं।
नहीं टूटता नियम कभी ये,
रोज़ बात के पक्के हैं।

कभी कापियाँ कभी किताबें,
लेकर घर पर आ जाते।
ले आते हैं पेन पेन्सिल,
घर घर में ख़ुद बँटवाते हैं।
उनके पेन पेन्सिल होते,
अच्छे सुन्दर सस्ते हैं।

हम तो झुग्गी के ग़रीब हैं,
झोपड़ियों में रहते हैं।
कहीं हमें पिछड़ा कहते हैं,
कहीं भिखारी कहते हैं।
चाचा कहते हम लोगों में,
ही तो ईश्वर बसते हैं।

मदद सदा निर्बल निर्धन की,
यह तो रीत सनातन है।
पर सेवा के लिया प्रभु ने,
हमें दिया मानव तन है।
दया प्रेम करुणा के मेले,
कितने अच्छे लगते हैं।

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