बोलेगा साहित्य मेरा
कहफ़ रहमानी 'विभाकर'एकदिन,
दृग-कोष शिथिल पड़ जाएँगे
औ' स्मरणांजलि धूमिल
होंगे हस्त कम्पित
पग-पग विराम होगा।
हूँगा मौन
होगी शिथिल जिह्वा
परन्तु चहुँ ओर गुंजित
शिथिल रह मौन भी बोलूँगा
बोलेगा साहित्य मेरा।
एकदिन,
दृग-कोष शिथिल पड़ जाएँगे
औ' स्मरणांजलि धूमिल
होंगे हस्त कम्पित
पग-पग विराम होगा।
हूँगा मौन
होगी शिथिल जिह्वा
परन्तु चहुँ ओर गुंजित
शिथिल रह मौन भी बोलूँगा
बोलेगा साहित्य मेरा।