भूल न जाना आने को

15-07-2021

भूल न जाना आने को

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जाते  हो परदेश  सजन जी,
जाओ    हम   नहीं  रोकेंगे।
मुझसे तेरा बिछड़ना असह्य,
फिर  भी  हम  नहीं टोकेंगे।
किंतु याद रहे!  कुछ नाते हैं, 
जन्म-जन्मांतर निभाने को।
आए हमारी याद 'हे प्रियवर!
भूल   न  जाना  आने   को।
 
जाते  ही  तुम  पाती लिखना,
अपनी   सुधि  बतला   देना।
कब   पहुँचे  कहाँ  ठहरे तुम, 
अपनी जगह का पता  देना। 
मुझसे भी तुम  सुधि  पूछना, 
सुधि   मेरी   बतलाने    को।
आए हमारी याद 'हे प्रियवर!
भूल   न   जाना   आने  को।
 
विधि की कैसी रीत जगत् में,
सब-के-सब     निभाते    हैं।
हृदय  के  भीतर   बसनेवाले, 
परदेशी      हो     जाते    हैं। 
सबकुछ   देता  हमें  विधाता, 
एक दिन फिर छीन जाने को।
आए हमारी याद 'हे  प्रियवर!
भूल   न   जाना   आने   को।
 
है ज्ञात मुझे हर   बात ये मेरी
आँखें    कभी    ना   सोएँगी।
नित सुबह पनघट, चौराहे पर,
बाट        तुम्हारी     जोहेंगी।
चार पैसे  रोटी   की   ख़ातिर, 
जाते   तुम   दूर   कमाने को।
आए हमारी याद  'हे प्रियवर!
भूल    न   जाना  आने   को।
 
सावन   में   जब  लगेंगे  झूले,
सूखेगी       मेरी      अमराई। 
मैं  समझूँगी  तुमको  प्रियतम, 
तनिक भी मेरी याद न आयी।
कोयल गई  न तुमको  बालम,
मेरी     संदेश     सुनाने   को।
आए हमारी  याद  'हे प्रियवर!
भूल   न    जाना   आने   को।
 
जब   लेंगी    यादें    अँगड़ाई,
नैनों  की  नदियाँ   सिसकेंगी।
बहेगी     जब-जब     पुरवाई, 
तन-मन    में   तरंगें    उठेंगी। 
हो जाओ असमर्थ जब अपने- 
यौवन    को    समझाने   को।
आए हमारी  याद 'हे  प्रियवर!
भूल   न    जाना   आने  को।

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