भीम शिला

01-09-2021

भीम शिला

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

घर में दरवाज़ा नहीं था 
तब भी माँ ने
चौखट पर रस्सी लगा कर
टाँगी थी अपनी
फटी साड़ी
घर के खाली कनस्तरों
से न जाने कैसे
आटा निकाल कर माँ
भर देती थी
हमारा पेट।
बुख़ार में तपते शरीर में
माँ बीन लाती थी
जंगल से लकड़ियाँ
पिताजी की फटी बनियान
और हमारी फ़टी कमीज़ों को
माँ चुटकियों में सिल कर
कर देती थी रफू।
इतने दुःखों के बीच भी
उसके मुँह से फूट पड़ती थीं
स्वर लहरियाँ गीतों कीं।
कठिन संघर्षों में भी
अविचल स्थिर माँ
एक भीम शिला सी
जिसने बचा लिया था
टूटते केदार को।

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