भीगता क़तरा .....!
सूर्यप्रकाश मिश्राशबनमी एहसासों पर
चंद फुहारें यादों की
तेरे रुख़सारों पे
छलकते रेशमी क़तरे
क़तरा...
क़तरा....!
भीगते वो रेशमी क़तरे.......!
मजलिसें थी
तुम भी तो थे
इक दीवार के साये में
सिसकता वो क़तरा
क़तरा....
क़तरा .....!
भीगता वो रेशमी क़तरा....!!
जूनून की हद पार कर
था मैं निकला
अँधेरों की चादर से डरता
अँधेरों में भीगता वो क़तरा
क़तरा.....
क़तरा ......!
भीगता हर जीवन क़तरा ....!!!