भाववादी
नीतीश सिंहमन की भाषा ओझल है,
चुप बैठकर देखूँ सब समतल है
सहज ठहर जाऊँ विरक्त भाव है
आख़िर का वाद जाने कौन है?
मानो पटल पर शून्य है,
भुरी की चुप्पी पर परस्पर मौन है
दर्द की आशा मन से क्या पार है
क़लम की बातें जाने कौन है?
(भुरी गाय का नाम है)
मन करता संवाद भी हो,
विवशता भी क्या चार पैरों में भी
यहाँ तो पूरा मन भाव-विहिन है
बातों को समेटने वाला कौन है?
एक तिनके को डर है,
भाव की चपेट में लेखक मौन है
झोंके जो बारिश आने पर मग्न है
चौपालों का हाल जाने कौन है?