भाषा विमर्श शृंखला - 001 भारत की भाषाओं पर आसन्न संकट

01-07-2020

भाषा विमर्श शृंखला - 001 भारत की भाषाओं पर आसन्न संकट

शिव कुमार निगम (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

वैश्विक हिन्दी परिवार
भाषा विमर्श शृंखला - 001

दिनांक 14.06.2020 को माननीय श्री राहुल देव जी के साथ भाषा विमर्श कार्यक्रम पर रिपोर्ट

 

दिनांक 14 जून, 2020 को अक्षरम (भारत), वातायन (यू.के.), हिंदी राइटर्स गिल्‍ड (कनाडा) और झिलमिल (अमेरि‍का) के संयुक्‍त तत्‍वावधान में हिंदी परिवार, वैश्विक हिंदी परिवार, हिंदी प्रेमी और भाषा विमर्श व्‍हाट्सएप समूहों द्वारा भारत के वरिष्‍ठ व लोकप्रिय पत्रकार एवं भाषाविद माननीय श्री राहुल देव जी के साथ भाषा विमर्श शृंखला की पहली गोष्‍ठी ज़ूम एप पर सांयकाल 7.00 बजे से रात्रि 9.00 बजे तक आयोजित की गई। इस अवसर पर भारत के शिक्षा-संस्‍कृति उत्‍थान न्‍यास के संरक्षक एवं संचालक श्री अतुल कोठारी जी की उपस्थिति विशेष रूप से उल्‍लेखनीय रही। कार्यक्रम का संयोजन हिंदी भवन, भोपाल (म.प्र.) के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट द्वारा किया गया और इसका संचालन अक्षरम (भारत) के अध्‍यक्ष एवं वैश्विक हिंदी परिवार के संयोजक श्री अनिल जोशी द्वारा किया गया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में लंदन से डॉक्‍टर पद्मेश गुप्‍त का विशेष योगदान रहा और तकनीकी सहयोग सिंगापुर से सुश्री शीतल जैन एवं श्रद्धा जैन ने प्रदान किया।

कार्यक्रम के संयोजक डॉ. जवाहर कर्णावट ने कार्यक्रम के मुख्‍य वक्‍ता श्री राहुल देव जी एवं विशिष्‍ट अतिथि श्री अतुल कोठारी जी का संक्षिप्‍त परिचय दिया। आपने उन्‍हें अपने विचार प्रकट करने के लिए आमंत्रित करने से पहले हिंदी सहित अन्‍य भारतीय भाषाओं के अस्तित्‍व पर आसन्‍न संकट को दूर करने के लिए व्‍यक्तिगत के साथ-साथ संस्‍थागत रूप से कार्य करने की आवश्‍यकता पर बल दिया।

श्री अतुल कोठारी ने कहा कि ऐसी आम धारणा है कि समस्‍या का समाधान बाह्य परिवेश में खोजा जाता है अथवा यह मंथन किया जाता है कि समस्‍याओं का समाधान है अथवा नहीं, जबकि समस्‍या में ही समाधान निहित होता है। उन्होंने कहा कि जैसे माँ और मातृभूमि का कोई विकल्‍प नहीं होता, उसी प्रकार भाषा का भी कोई विकल्‍प नहीं होना चाहिए और हमें केवल समाधानों पर ही चर्चा करने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने भाषाओं के समक्ष मौजूदा संकट को दूर करने के लिए व्‍यापक जनजागरण, व्‍यापक जनांदोलन, अकादमिक स्‍तर पर संगठित प्रयासों जैसे समाधान बताए और कम से कम प्राथमिक स्‍तर तक शिक्षा का माध्‍यम भारतीय भाषाएँ हों, इस दिशा में काम करने की आवश्‍यकता पर बल दिया। श्री कोठारी ने कहा कि भारतीय भाषाएँ यदि शिक्षा का माध्‍यम होंगी तो युवा पीढ़ी को उससे लगाव बना रहेगा। इसके लिए लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं के माध्‍यम से बदलाव किया जा सकता है। उन्‍होंने भारतीय भाषाओं की गुणवत्ता और व्‍याक‍रणिक त्रुटियों पर ध्‍यान देने और भारतीय ज्ञान परम्‍परा को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास करने का आग्रह किया। भाषाओं के प्रति लगाव का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वैदिक गणित पर एक ऑनलाइन कक्षा में हिंदी माध्‍यम रखने पर भी उस कक्षा में देश और दुनिया से लगभग 8800 छात्र जुड़े। इसी प्रकार, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के एक प्राध्‍यापक द्वारा केवल हिंदी में पुस्‍तक लिखना और उसका अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्‍ध कराने के तमाम अनुरोधों को सिरे से नकार देना उनके भाषा प्रेम को ही दर्शाता है। 

कार्यक्रम के संयोजक श्री जवाहर कर्णावट ने उनका आभार प्रकट करते हुए अवतग कराया कि श्री कोठारी मूलत: गुजराती भाषी हैं।

कार्यक्रम के संचालक श्री अनिल जोशी ने श्री राहुल देव जी का परिचय देते हुए कहा कि वे न केवल पत्रकारिता जगत के शीर्षस्थ अध्येता हैं, बल्कि भाषाओं पर आसन्‍न संकट को दूर करने की दिशा में जन आंदोलन खड़ा करने के लिए भी अद्वितीय प्रयास कर रहे हैं।

श्री राहुल देव जी ने अपने उदबोधन में सर्वप्रथम यह चिंता व्‍यक्‍त की कि शिक्षित और मध्‍यवर्गीय परिवारों के बीच देखा जाए तो उनके और बच्‍चों के व्‍यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उनकी अपनी भाषा की स्थिति बहुत दयनीय होगी। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि मैं केवल हिंदी के भविष्‍य को लेकर चिंतित नहीं हूँ, बल्कि अन्‍य भारतीय भाषाओं को लेकर भी उतना ही चिंति‍त हूँ। हम सभी हिंदीभाषी लोगों को भी अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर अन्‍य भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए काम करना होगा। उन्होंने निम्नलिखित बिंदुओं की ओर से विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया:

  1. इज़राइल का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने इस बात को स्‍वीकार किया कि भारत में इज़राइल जैसा दृढ़नि‍श्‍चय नहीं है। इज़राइल ने लगभग 200 वर्ष पूर्व लगभग मृतप्राय हो चुकी भाषा को अपनी राजभाषा बनाया और आज सभी शोधकार्य तक उसी भाषा में हो रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि शिक्षा का माध्‍यम अंग्रेज़ी होना सबसे बड़ा ख़तरा है क्‍योंकि कोई भी बच्‍चा अपने भाषा परिवेश से निकल कर पराए और डरावने आंग्‍ल भाषा परिवेश में आकर बहुत असहज महसूस करता है।

  2. इंग्लिश कंफ़र्टेबल (ईसी) और इंग्लिश फ़र्स्‍ट (ईएफ़) जैसे विभाजन का ज़िक्र करते हुए कहा कि भारत में इस तरह का भाषाई विभाजन भारतीय भाषाओं के भविष्‍य पर बहुत बड़ा ख़तरा है।

  3.  भाषा की दृश्‍यता यानि अपनी लिपि में उसका दिखाई देना, अपने परिवार के बाहर अपनी भाषा का सुनाई देना बच्‍चों को अपनी भाषा के अस्तित्‍व का आभास कराते हैं और ऐसी विपरीत घटनाएँ बच्‍चों में अपनी भाषा के महत्‍व को कम कर देती हैं। 

  4. मराठी भाषा का विशेष रूप से उल्‍लेख करते हुए कहा कि तमाम नि:शुल्‍क सुविधाओं के बावजूद भी मराठी माध्‍यम के विद्यालयों में विद्यार्थियों का प्रवेश घटता जा रहा है। अन्य भारतीय भाषाओं की भी कमोवेश यही स्थिति है। अंग्रेज़ी माध्‍यम से पढ़ने वाले बच्‍चों की विचारधारा भी अंग्रेज़ीमय होती जा रही है और युवाओं पर अंग्रेज़ी और अमेरीकी मनोरंजन जगत का सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ना भारतीय भाषाओं पर सबसे बड़ा आसन्‍न संकट है।

  5. भाषा की जीवन्‍तता और ज़ोखिम पर यूनेस्‍को द्वारा किए गए समेकित सर्वे का ज़िक्र करते हुए किसी भी भाषा को बचाए रखने के लिए उनके द्वारा निर्धारित मानदंडों को निम्नानुसार रेखांकित किया (1) अंतर पीढ़ी अंतरण, (2) बोलने वालों की संख्‍या, (3) कुल जनसंख्‍या में उस भाषा को बोलने वालों का प्रतिशत, (4) उस भाषा में पाठ्य सामगी की उपलब्‍धता, (5) नए मीडिया क्षेत्रों में भाषा की प्रतिक्रिया, (6) प्रलेखन के प्रकार और गुणवत्‍ता, (7) सरकारी स्थिति और प्रयोग सहित सरकारी एवं संस्‍थागत भाषायी दृष्टिकोण और नीतियाँ, (8) भाषा प्रयोग के क्षेत्रों में बदलाव और (9) अपनी भाषा के प्रति उस भाषा समुदाय का रुख।

  6. भारत में अपनी भाषा की अनदेखी किए जाने के संदर्भ में एक विशेष बात बताई कि यहां की कंपनियाँ अपने और अपने उत्‍पादों के नाम भी अपनी भाषा में नहीं बनाती हैं, जबकि विदेशों में ऐसा नहीं है। उन्‍होंने उद्योग जगत से इसमें सुधार करने का आग्रह किया।

  7. देश में भाषा और समाज के बारे में उच्‍चतम विमर्श 1967 में किया गया था, उसके बाद से आज तक ऐसा सार्थक विमर्श नहीं हुआ।

  8. भाषा के प्रति हमारे राजनीकित नुमाइन्‍दों की रुचि का ज़िक्र करते हुए बताया कि लोक सभा और राज्‍य सभा के लिए भाषा विमर्श पर उनके द्वारा आयोजित की जाने वाली कार्यशालाओं में संसद सदस्‍यों की संख्‍या बहुत कम रहती थी, एक कार्यशाला में तो केवल चार सांसदों ने भाग लिया था।

  9. मीडिया द्वारा हिंदी को विकृत करने की घटनाओं का संस्‍थागत विरोध न होना हमारी गहरी उदासीनता को दर्शाता है।

  10. . मेटानेट (Multilingual Europeeon Technology Alliance) द्वारा किए गए सर्वे के निष्‍कर्षों का ज़िक्र करते हुए कहा कि जब यूरोप में 21 यूरोपीय भाषाएँ डिजिटल विलोपीकरण की कगार पे हैं, तो भारतीय भाषाओं की स्थिति क्‍या होगी, इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है।

  11. समाधानों पर चर्चा करते हुए राहुल जी ने कहा कि इस दिशा में केंद्र सरकार, राज्‍य सरकारों, न्‍यायपालिका, विधायिका और शिक्षा जगत की भूमिका काफ़ी महत्‍वपूर्ण होगी, परन्‍तु इन पर दबाव बनाने के लिए जन आंदोलन का होना ज़रूरी है। इस दिशा में श्री कोठारी जी के नेतृत्‍व वाली शिक्षा, संस्‍कृति उत्‍थान न्‍यास जैसी संस्‍थाओं के माध्‍यम से प्रयास किए जाने की ज़रूरत है।

  12. हमें अपने बच्‍चों को अंग्रेज़ी से वंचित नहीं करना है, परन्‍तु बचपन और यहाँ तक कि गर्भ में ही उन पर अंगेज़ी थोपने की प्रवृत्ति से हमें बचना होगा। अंत में उन्‍होंने पुन: इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें हिंदी के साथ साथ अन्‍य भारतीय भाषाओं को भी उतनी ही तरजीह देनी होगी अन्‍यथा भारत में ही हिंदी का विरोध बढ़ता जाएगा और हमारे प्रयासों के सकारात्‍म‍क परिणाम प्राप्‍त नहीं होंगे। 

कार्यक्रम के समापन में वैश्विक हिंदी परिवार के संयोजक श्री अनिल जोशी ने कहा कि भाषा विमर्श का यह सिलसिला प्रत्येक सप्ताह जारी रहेगा और अगला विमर्श 21 जून 2020 को शाम 5 बजे आयोजित होगा। अंत में लंदन के प्रतिष्ठित साहित्‍यकार डॉ. पद्मेश गुप्‍त ने सभी का धन्‍यवाद ज्ञापित किया। 

{कार्यक्रम की यह विस्तृत रिपोर्ट इलेक्‍ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार में उप निदेशक (राजभाषा) श्री शिव कुमार निगम ने अति तत्परता और परिश्रम से तैयार की है, उन्हें विशेष धन्यवाद}। 
 

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