भरोसा

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

आकाश पर बादल छाए हुए थे। एक वृद्ध, आधा मील दूर नदी से घड़े मे पानी भर-भरकर, अपने घर में लगे पौधों में डालने के लिए ला रहा था, जिसे देखकर, खेलने जा रहा एक युवक व्यंग्य से बोला, “बाबा! इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो? बरसात तो होने ही वाली है . . . ।”

“मुझे अपने पर भरोसा है . . . इन बादलों पर नहीं . . ., “उस वृद्ध ने बादलों की ओर इशारा करते हुए कहा।

जब वह वृद्ध नदी से घड़ा भरकर वापिस आया, तो उसी जगह पर वह युवक उसे फिर मिल गया; पर इस बार वह कुछ नहीं बोला, बल्कि आँखे नीची करके निकल गया; क्योंकि उस समय तेज धूप निकल आने के कारण वह खेल के मैदान से वापिस आ गया था। अचानक पश्चिम की तरफ़ से चली तेज़ हवाओं ने उन बादलों को उड़ा दिया था।
 

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