भारत के बारे में प्रेमचंद के स्वप्न
मनोज शर्माभाम्ह नाम के आचार्य ने 'सहित' शब्द का प्रयोग 6 वीं शताब्दी में पहली बार किया था। उनके अनुसार जो कुछ भी रचनाएँ गद्य, पद्य हैं उनको काव्य कहा जाता है। शब्द और अर्थ का सहित भाव ही साहित्य है। शब्द और अर्थ की अवधारणा किसी भी रचना को सुंदर बनाती है। साहित्य में शब्द की सुंदरता भी अनिवार्य है। शब्दों का बहुत गहरा प्रभाव हमारी मनोरचना पर पड़ता है। मानस के समस्त भावों, मानसिक वेगों, अनुभूति, विचारों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम साहित्य है।
मानव के समस्त भावों मानसिक उद्वेगों, अनुभूति विचारों को अभिव्यक्त करने में साहित्य का सर्वोच्च स्थान है। प्रेमचंद के शब्दों में 'साहित्य हमारे जीवन को स्वाभाविक और सुन्दर बनाता है।' प्रेमचंद एक पुरोधा उपन्यासकार रहे हैं जिन्होंने अपने समय में साहित्य की परिभाषा ही बदल दी। यद्यपि उनके आरंभिक उपन्यास आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी रहे किंतु समय की गति के चलते यथार्थवादी साहित्य की संकल्पना करना उनका प्रमुख उद्देश्य रहा।
प्रेमचंद का साहित्य कहीं ज़मींदारों के अत्याचारों की सच्ची तस्वीर दिखाता है तो कहीं मुफ़लिसी में जीते दीन-हीन दलितों की दयनीय दशा से आत्मसात् कराता है। प्रेमचंद की पैनी नज़र समाज के हर वर्ग पर पड़ी तभी उनका साहित्य आज भी कालजयी साहित्य की भांति जीवंत है।
प्रेमचंद के लेखन में एक क्रांति है जिसकी चिनगारी उनकी हर कृति में दिखाई पड़ती है। प्रेमचंद का कथा संसार अद्भुत है जिसमें रोष, व्यंग्य, कुढ़न, ललकार, विषाद, करुणा, भावुकता और आत्मदया के तमाम शेड्सवाली समकालीन रचनाशीलता के विभिन्न संसारों को समझने का उन्होंने प्रयत्न किया है ।
प्रेमचंद ने नये भारत का स्वप्न देखा था जिसको उनके लेखन में सर्वत्र देखा जा सकता है। आज़ादी पूर्व महाजनी सभ्यता का दौर था जिसमें निर्धन प्रायः पिसता था पर प्रेमचंद ने अपने साहित्य के दम पर जन-जन में ऐसी क्रांति उत्पन्न कर दी थी कि भारत का पिछड़ा कमज़ोर तबक़ा भी संघर्ष को सहर्ष स्वीकार लेता था।
प्रेमचंद ने जमींदारों के ज़ुल्मों पर न केवल लगाम लगायी थी अपितु ऐसे यौद्धाओं को जन्म दिया था जो स्वराज की राह पर हँसते हुए स्वयं को न्योछावर करने को तत्पर रहते थे। प्रेमचंद के इस प्रगतिशील पथ को कालांतर में 'रेणु' आदि उपन्यासकारों ने मैला आँचल जैसी रचनाओं में अपनाया।
प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रसंगिक हैं जितने अपने दौर में थे जितना उनको कृषक, दलित, या कमओर वर्ग से प्रेम था उतना ही वृद्ध और जीव जानवरों से लगाव था। कथा सम्राट प्रेमचंद ने न केवल सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य किया वरन् मज़दूर वर्ग के साथ गहरी संवेदना दिखाई। बूढ़ी काकी आदि कथाएँ अत्यंत मार्मिक है जिनमें बुज़ुर्गों के प्रति छिपा उनका मर्म जगजाहिर हुआ है। कफ़न, पूस की रात, सदगति आदि कथाएँ मात्र कहानी न होकर एक उज्ज्वल भारत की ओर अग्रसर होने का प्रथम चरण है। गोदान उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसमें होरी की गाय की लालसा रखना पर मरजाद की रक्षा के लिए अंत तक संघर्ष करना अप्रत्यक्ष रूप में भारतवर्ष से प्रेम व उसकी रक्षा करना है इसमे प्रेमचंद स्वयं कहीं न कहीं होरी किसान के रूप में प्रकट हुए हैं। प्रेमचंद न केवल किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं बल्कि गांधी के आहिंसा मार्ग को भी प्रशस्त करते प्रतीत होते हैं।
प्रेमचंद का साहित्य नये भारत की काल्पनिक तस्वीर है जो उनके उपन्यासों व कहानियों में स्पष्टतः दिखाई दे रही है। यद्यपि प्रेमचंद पूर्व ही साहित्य का लेखन होता था पर वो कल्पना अय्यारी आदि का ही पूर्वराग था जबकि प्रेमचंद ने नये भारत के सपने को साकार करने का संदेश दिया। प्रेमचंद का एक-एक पात्र जीवंत पात्र है जो किसी न किसी रूप में सामाजिक कुरीति सूदख़ोरी दबंगई से कुचले पात्र का सहमा चित्र अंकित करता है बल्कि उनके मर्म को सहेज कर कटु हृदय में परिवर्तन कर देते हैं। प्रेमचंद का मानना था कि स्वराज ही पूर्ण भारत है तभी हर वर्ग आनंद के साथ जीवन यापन कर सकता है।
प्रेमचंद ऐसे देश और समाज की कल्पना करते थे जिसमें किसानों, मज़दूरों, दलितों और ग़रीबों के लिए जगह हो। प्रेमचंद ऐसे कालजयी लेखक हैं, जिन्होंने पीढ़ियों और समय की सीमाओं को पार कर लिया और आज तक हिंदी साहित्य में निर्विवाद रूप से शीर्ष पर बने हुए हैं।
प्रेमचंद के पात्र सरल हैं निष्कपट हैं, धर्म-भगवान-भीरू हैं किंतु इसका मतलब यह नहीं कि वह समझदार नहीं है वह नैतिक दृष्टि से अंत तक अन्याय सहने को विवश है पर इसका यह तात्पर्य नहीं कि वह ऐसी अव्यवस्था में बदलाव न चाहता हो। 'रंगभूमि' में प्रेमचंद युगदृष्टा ही नहीं भविष्य दृष्टा के रूप में सामने आये हैं। रंगभूमि के स्वाधीनता-संग्राम में स्वयं प्रेमचंद का अदम्य साहस एक 'कलम का सिपाही' बनकर उमड़ता रहा है।
प्रेमचंद की भाषा जन मानस की भाषा है जिसमें उनकी संवेदना के साथ-साथ उनके पात्रों में व्यक्त कौतुहलता, मार्मिकता, टीस, कुढ़न, आस, दुःख- अवसाद, जाग्रति, चेतना, विश्वास, व उमंग स्पष्ट रूप से दिखाई देती है उनका कथा उपन्यास संसार उज्ज्वल भारत का सपना लिये है जिसमें उनकी भाषायी चातुर्यता भरी पड़ी है।
संक्षेप में प्रेमचंद का साहित्य मात्र साहित्य न होकर जन जागृति है जिसके दम पर आज भारत तेज़ी से प्रगति पथ पर फल फूल रहा है। ये प्रेमचंद का ही प्रथम साहित्यिक प्रयास था जिसके कारण उनके सभी आज सपने साकार हैं। चाहे कुशल प्रशासन हो या सूदख़ोरों के चंगुल से निजात, दलितों का सम्मान हो या निर्धन कृषको व स्त्रियों की स्थिति में सुधार के साथ-साथ कामकाज का उचित प्रबंध व कुरीतियों पर लगाम शायद यही उनके सपने थे जो प्रायः उनके साहित्य में यत्र-तत्र दिखते थे।
मनोज शर्मा
एम.ए.हिन्दी
दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली
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