भाई बहन का रिश्ता
अवधेश कुमार निषाद ’मझवार’(रक्षाबंधन विशेष)
राजू की माँ आवाज़ लगाई, "सुन बेटा!"
राजू ने पूछा, "जी माँ, बोलिये क्या बात है?"
माँ ने कहा, "कल रक्षा बन्धन का त्यौहार है, इस बार तेरी बहन पूजा राखी बाँधने के लिए नहीं आ पा रही है। तुझे ही उसकी ससुराल जाना पड़ेगा।"
राजू मना करते हुए बोला, "मुझे नहीं जाना उसके घर पर; वो मुझे डाँट-फटकार लगाती और पीटती थी। मुझे उसके घर नहीं जाना।"
माँ ने कहा, "बेटा ऐसे नहीं बोलते। वो तो तेरे भले के लिए डाँटती होगी। तू तो जानता ही है कि तेरे अलावा कोई और भाई है नहीं उसका; तुझे तो जाना ही पड़ेगा।"
"ठीक है माँ तुम कहती हो तो कल मैं चला जाऊँगा।"
सुबह जल्दी तैयार होकर राजू अपनी माँ के पास आया और बोला, "बताओ माँ क्या ले जाना है दीदी के घर?"
माँ ने पहले ही थैले में सेमरी, चावल, बूरा, मिठाई तथा अन्य सामान भी रख दिया था। उस सामान को साइकिल पर बाँध कर राजू घर से निकल गया। वह साइकिल से तीन घंटे का सफ़र तय करके 12 बजे तक अपनी दीदी के घर पहुँच गया।
राजू की दीदी का घर शहर के बड़े घरों में शामिल लग रहा था। घर में प्रवेश करते ही जीजा जी से भेंट हुई। राजू ने अपने जीजा जी को प्रणाम कहा और पैर छूकर पूछा, "दीदी कहाँ है?"
उन्होंने बताया, "उसने सुबह से व्रत रखा है, राखी बाँधने की तैयारी में जुटी है; वो अभी किचिन में ही है। आप बैठो मैं बुलाता हूँ।"
जीजा जी ने आवाज़ लगाई, "पूजा तुम्हारे छोटे भैया आए हैं।"
आवाज़ सुनते ही वह दौड़ती हुई आई और राजू से पूछा, "कैसा है? मेरे भाई घर पर माता पिता जी कैसे हैं? और अपने गाँव में मेरी सहेली कौन सी सहेली आई है?"
राजू ने बताया कि लगभग तेरी सभी सहेलियाँ आईं हैं और वो सब तेरे बारे में पूछ रहीं थीं। ये बात सुनकर पूजा का अपने गाँव जाने का मन किया, काश आज मैं अपने गाँव में होती तो बचपन की सभी सहेलियों से ज़रूर भेंट कर पाती।
"घर के हाल-चाल पूछती रहोगी कि चाय-पानी भी दोगी?" उसके जीजा जी ने टोका।
"जी बिल्कुल, पहले राखी तो बाँध लूँ। सुबह से व्रत है, राखी बाँधकर ही कुछ खाऊँगी।"
पूजा तुरंत टीके की थाली ले आई, उस थाली मैं रोली, राखी, मिठाई, एवम् खीर रखी हुई थी। राखी बाँधने की तैयारी की गई। पूजा ने अपने पति से कहा कि राखी बाँधते हुए हमारा फोटो खींच लेना जी।
उन्होंने कहा, "ठीक है।"
उसने सबसे पहले तिलक किया तथा राखी बाँधी और फोटो खिंचवाए। दीदी ने कहा, "कुछ देगा नहीं या फिर ख़ाली हाथ ही राखी बँधवायेगा?"
राजू एक 100 का नोट देकर पैर छूने लगा और पूजा ने आशीर्वाद के रूप में मज़ाक करते हुए राजू की पीठ को थपथपाने लगी, उसने कहा, "मैंने आज तेरे लिए स्पेशल खीर बनाई है। ये ले खा ले।"
राजू खीर लेकर खाने लगा, और पूरी कटोरी की खीर खा गया।
पूजा ने टोका, "थोड़ी और बची है अब मुझे खाने दे।" लेकिन राजू ने उसके हाथ से पूरा खीर का टिफ़िन छीन लिया और बोला, "खीर अच्छी बनी है मैं अपने घर ले जाऊँगा।"
इतने में किचिन से नौकरानी मुन्नी ने आवाज़ लगा के पूछा, "दीदी नमक कहाँ रखा है, नमक नहीं मिल रहा।"
पूजा ने किचिन में जाकर पूछा, "क्यों बुला रही थी?"
मुन्नी बोली, "दीदी नमक चाहिए।"
पूजा ने उससे कहा, "ये डिब्बे में पिसा हुआ रखा है; ले ले।"
मुन्नी ने बताया, "मैंने ये चेक कर लिया है, ये तो चीनी है।"
ये बात सुनकर पूजा दंग रह गई, और उसने अपने मन में सोचा, कि मैंने खीर में नमक डाल दिया है। इसीलिए राजू मुझे और किसी और को खीर को चखने नहीं दे रहा है। उसको लगता है, कि कहीं मेरे ससुराल वालों को पता चल गया तो मेरी दीदी को डाँट पड़ेगी।
पूजा किचन से बाहर आई और राजू को देख कर कहने लगी, "मुझे पता है तू हमें खीर क्यों नहीं खाने दे रहा था।"
वो अपने भाई के गले मिली और उसकी आँखों में आँसू झरने लगे। वास्तव में भाई बहन का रिश्ता अनोखा होता है। हर भाई-बहन का रिश्ता ऐसा ही होना चाहिए। जो एक दूसरे को समझ सकें, एवम् संकट की घड़ी में काम आ सकें।
राजू राखी बँधवा कर घर के लिए निकल गया।
आख़िर भाई-बहन का रिश्ता निराला है!