बस्ते का परिमाण
हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’बचपन को तुलते देखा है,
बस्ते के परिमाण में।
कभी दिखावे.. में जलते,
कभी झुलसते नाम में।
यही दिखावा, भरता है निज,
स्वार्थ -जनित मनुजों के घर।
यही कर... उठा-पटक कतरे है,
निज, कोमल-छुटपन के पर।
बचपन बह जाता न जाने,
कब अह्न की धार में,
बचपन को तुलते देखा है।